लगभग सभी जैनी ये कहते हैं कि
जैन मंत्र जल्दी सिद्ध नहीं होते.
उवसग्गहरं, शांति पाठ, इत्यादि
वर्षों से पढ़ने पर भी
कुछ फर्क नहीं पड़ा.
जो तीर्थंकरों की शरण में ना हों,
क्या वो जैनी हैं?
कहने को जैनी हैं,
पर वास्तव में हैं नहीं!
जब मूल में ही भूल हो,
और उसे बार बार नज़रअंदाज़ करते हों
तो रिजल्ट कैसे मिलेगा?
वास्तविकता ये है कि
जो भी साधक
“मोक्ष” की इच्छा रखता है,
और
तीर्थंकरों द्वारा बताये मार्ग पर चलता है,
उसे सारे मंत्र अति शीघ्र सिद्ध होते है.
(“हो सकने” की बात नहीं है, होते ही हैं).
फोटो:
परम शांतिदायक श्री शांतिनाथ भगवन.