धर्म की सबसे सरल व्याख्या (जो ज्यादातर लोग मानते हैं):
किसी भी आत्मा को
आपकी वजह से
दुख ना पहुँचे
यह ध्यान रखना
यही धर्म है ।
किसी का कुछ भी “बुरा” नहीं किया हो
उससे कौनसा धर्म हुआ?
(ये अवश्य है कि कोई “पाप” नहीं हुआ
पर ये तो सिर्फ “कर्म” रोकने की बात हुई).
किसी को भी दुःख ना पहुँचाने वाला व्यक्ति
वास्तव में कोई परोपकार नहीं करता.
ये “अधूरा” है.
जैन धर्म के अनुसार जो रास्ता
भव विरह यानि “मुक्ति” दिलाता हो,
वो “धर्म” है.
“किसी” का ही नहीं बल्कि “कुछ” भी बुरा किया हो,
उसका मन में पश्चात्ताप करना ये “धर्म” है.
किसी भी आत्मा को
आपकी वजह से
सुख पहुँचे
वो क्या है?
वो “पुण्य” का बंध है.
इससे भी मुक्ति नहीं मिलती.
“संसार” ही बढ़ेगा.
जैन धर्म को सच्चे तौर से जानें
और मात्र “मोक्ष” मार्ग का अनुसरण करें.