mithyatva

धर्म क्या है? भाग-1

चित्तौड़ (पुराना नाम “चित्रकूट” ) राज्य के प्रकांड पंडित और राजपुरोहित श्री हरिभद्र को ये अहंकार था कि उनके जैसा विद्वान इस दुनिया में नहीं है. इसलिए वे तीन चीजें अपने साथ रखते थे: एक रखते थे – सीढ़ी (Ladder) – कि यदि कोई उनसे शास्त्रार्थ करने से भाग कर स्वर्ग में भी  छुप गया हो, तो वहां  जाकर भी उससे वो शास्त्रार्थ करेंगे और उसे वाद में हराएंगे. दूसरा रखते थे – “जाल” – कि यदि उनसे शास्त्रार्थ करने से भाग कर कोई पाताल भी चला गया गया हो, तो वहां जाकर भी उससे शास्त्रार्थ करेंगे और उसे वाद में हराएंगे. और तीसरा रखते थे एक “कुदाल” (Axe) कि यदि उनसे शास्त्रार्थ करने से भाग कर कोई पृथ्वी के भूतल में भी छिप गया हो, तो  जमीन खोदकर भी उससे शास्त्रार्थ करेंगे और उसे वाद में हराएंगे.

और अपने पेट पर बांधते थे – “सोने” का एक पट्टा ताकि “ज्ञान” की अधिकता के कारण उनका पेट फट ना जाये, ऐसा लोग मानें (खुद तो मानते ही थे).

आज ये सारी बातें हमें हास्यास्पद लग सकती हैं.

 

परन्तु इसके साथ उन्होंने एक भीषण प्रतिज्ञा कर रखी थी कि “किसी भी व्यक्ति” के कहे गए “वाक्य” का अर्थ यदि उन्हें समझ में नहीं आएगा तो वो उसके “शिष्य” बन जाएंगे.
उनके “शास्त्रीय ज्ञान” का लेवल हम इस बात से जान सकते हैं.

एक बार राजभवन में मंत्र विधि पूरी करके जब अपने घर की ओर जा रहे थे जब उनको एक वृद्ध स्त्री के मधुर स्वर सुनाई दिए:

“चक्किदुगं हरी पणगं, पणगं चक्कीण केसवो चक्की
केसवचक्की केसवदु, चक्की केसीय चक्कीय ||

तीव्र बुद्धिशाली ने ये शब्द कभी नहीं सुने. पूरी खोपड़ी हिल गयी, पर ये “चक चक” समझ में नहीं आई.
तब जाना कि एक “साध्वीजी” ये शब्द बोल रही थी.

 

पूछा: हे “अम्बा” (माँ), आपने ये “चक चक” बहुत बार बोला.
साध्वीजी ने उत्तर दिया: हे पुत्र, ये “चक चक” नहीं है, ये तो बहुत पुराना है. (“चक चक “तो अभी ही जन्मा चिड़िया का बच्चा करता है).
जवाब सुनकर हरिभद्र चमत्कृत हुवे.  पूछा- इसका अर्थ क्या है?
साध्वी जी ने कहा: “जिनागमों” का “अभ्यास” (learn) करने की हमें “आज्ञा” है पर “विवेचन” (explanations) करने की नहीं. इसलिए अर्थ जानना हो तो हमारे गुरु “जिनभट्ट सूरी” जी के पास जाओ.

साध्वीजी से ठिकाना जानकर,
रात भर चित्त में भयंकर उहा-पोह लेकर, सवेरे पहुंचे जिनभट्टसूरीजी के पास.
जिनभट्ट्सुरीजी : हे बुद्धिनिधान, आप कुशल तो हैं?
हरिभद्र: एक वाक्य के अर्थ को भी समझ नहीं पाने वाला क्या मैं बुद्धिनिधान हूँ? आप कुशलता की बात पूछते हैं, मैं कल से सोया नहीं हूँ. साध्वीजी से हुई बात बताकर कहा आप मुझे “चक्किदुगं” का अर्थ समझाने की कृपा करें.

 

आगे पढ़ें : धर्म क्या है?  भाग-2
(पर पहले पूछें अपने आप से क्या आप “धर्म” सिर्फ “जानना” ही चाहते हैं या “अपनाना” भी चाहते हैं.
सोच समझ कर निर्णय लेना.
एक बार “हाँ” बोला तो फिर “हरिभद्र” की तरह वापस मुड़ कर पीछे मत देखना ).

error: Content is protected !!