पर्युषण के बाद क्या करें?

पर्युषण पर्व के उपलक्ष में सभी एक दूसरे से हार्दिक क्षमापना करते हैं.
परन्तु इस पर्व की पूर्णाहुति के तुरंत बाद :
१. मंदिरों और गुरुओं के पास “जाना” बंद.
२. होटलों का “दौर” शुरू.
३. “सिनेमा हॉल” में भीड़!
किसकी?
जैनों की!

 

परम पूज्य तरुण सागर जी ने कहा है कि आने वाली जैन पीढ़ी दो प्रकार की होगी :
१. शाकाहारी जैन
२. माँसाहारी जैन

अभी मुंबई में “पर्युषण” के समय “जैन स्थानक” के सामने ही “माँसाहारी” लोगों ने ऐसा “भौंडा” काम किया जिससे पूरा जैन समाज “आहत” हुआ.
और इधर “आचार्य श्री तरुण सागर जी ने ऐसा क्या देखा कि उन्हें ये कहने की जरूरत पड़ी?”

 

(“रूमाली रोटी” के “चक्कर” में,
“वेजीटेरियन सूप” के “झांसे” में,
“बर्गर  पिज्जा” के “आनंद” में
जैनी वहां जाने को तैयार हैं
जहाँ “होटल या रेस्टोरेंट” बाहर से बहुत सुन्दर दिखाया देता है
और “लोगों” की “भीड़” ये साबित कर रही होती है कि
“वहां” का “खाना” स्वादिष्ट है)!

 

प्रश्न:
उन्हें ये कहने की आवश्यकता क्यों पड़ी?
इस पर अभी तो हमने विचार ही नहीं किया. उन्होंने कहा, हमने सुन लिया.
ज्यादातर प्रखर प्रवचकार के व्याख्यान में भी यही होता है, बड़ी भीड़ होती है – सुनने का आनंद लेने के लिए!
सुनकर अपनाना तो मात्र 5-10 प्रतिशत लोगों में ही पाया जाता है.
(लोग फ़ोकट में ही CA के रिजल्ट को बदनाम करते हैं). 🙂
ज्यादातर लोगों पर कुछ भी असर नहीं होता.
सब कुछ “जानकर” भी  वही अपनाते हैं जो नहीं अपनाना चाहिए.
पर क्या करे?
“आदत” से जो “मजबूर” हैं.
इतना लाचार जैनी कभी नहीं था.
ये लाचारी कैसे आई?
जब से जैनों ने “रात्रिभोजन” शुरू किया.

 

अभी भी पर्युषण पर जिन्होंने अट्ठाई, सोलह उपवास और मासक्षमण किये हैं,
वो वापस रात्रि भोजन करते हुवे मिल जाएंगे.
इसका क्या अर्थ लगाएं?
“अचानक” से “किसी” ने हमें जगाया….हम जागे… आठ दिन के लिए या फिर एक महीने के लिए.
फिर सो गए : कुम्भकर्ण से भी बड़ी निद्रा में : एक वर्ष के लिए!
(कुम्भकर्ण तो छ: महीने ही सोता था).
यदि ये कहें कि “रात्रिभोजन” करना पड़ता है,
तो ये “सरासर” गलत है.
मुंबई जैसी मेट्रो सिटी में लोग “चौविहार हाउस” चलाते हैं.
बस “वही” इच्छा शक्ति होनी चाहिए
जो अट्ठाई, सोलह उपवास और “मासक्षमण” के समय थी.

 

विशेष:
यदि “घर” पर बनाये “सूप,” “रोटी”  और “सब्जी”  में वो “स्वाद” नहीं आता
जो “होटल” के बनाये “सूप” में आता है तो “सावधान” हो जाएं.
कहीं आप अनजाने में ही धीमे धीमे “मांसाहार” की ओर तो नहीं बढ़ रहे हैं?

(पोस्ट को पढ़कर मात्र आगे ना बढ़ें, जरा चिंतन करें और चेक करें कि आपके परिवार वाले और रिश्तेदार भी तो यही नहीं कर रहे).

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