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वर्षी तप किसलिए?

बेले-बेले (लगातार दो-दो उपवास) की तपस्या करने वाले
अम्बड़ श्रावक को  “वैक्रिय-लब्धि” प्राप्त हो गयी.

वैक्रिय-लब्धि से व्यक्ति अलग अलग रूप धारण कर सकता है.
ऐसे दूसरे भी श्रावक हुवे हैं जिन्होंने कई चमत्कार दिखाए हैं
जिनमें जम्बू कुमार  का बड़ा नाम है
उसके ब्रह्मचर्य के प्रभाव से
500 चोर आये
चोरी करने
और
बने सभी जैन साधू !

एक अकेला जैन श्रावक क्या कर सकता है,
उसका तो ये मात्र एक उदाहरण है.
जो ये समझते हैं कि “लब्धि” सिर्फ “जैन साधुओं” में ही प्रकट होती है,
वो इस बात से सबक लें.

अरे !
सिद्धि तो पांच मकार (मद्य, मांस, मत्स्य, मुद्रा और मैथुन) से भी प्राप्त हो सकती है. ऐसा पश्चिम बंगाल में बहुत प्रचलित है जिसे काला जादू कहते हैं.
परन्तु ऐसी प्राप्त सिद्धि अंत में साधक को डुबाने वाली होती है
और जो उसके फोल्लोवेर्स (followers) बनते हैं, वो भी डूबते हैं.

“जप-तप-ध्यान” से
“सिद्धि” तो “रास्ते” में पड़ी मिलती है.

परन्तु ये रास्ते में पड़े वो “कांटे” हैं
जो “मोक्ष” में “बाधक” बनते हैं.

इसीलिए जैनों में “वर्षी-तप”
कोई “सिद्धि” प्राप्त करने के लिए नहीं किया जाता,
“कर्म” खपाकर
“मोक्ष” प्राप्त करने के लिए किया जाता है.

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