आज पूरे सौ दिन हुवे, jainmantras.com साइट की शुरुआत को.
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कइयों के मैसेज आये कि jainmantras.com से उन्हें जैन धर्म के बारे में काफी समझने को मिला और कुछ ऐसी बातें, तो अभी तक नहीं सुनी थीं, वो जानीं.
कइयों ने “सामायिक” को एक नए अंदाज़ से देखना शुरू किया.
कइयों ने “लोगस्स” के प्रभाव को जाना,
कइयों ने “उवसग्गहरं” स्त्रोत्र के रहस्यों को जाना.
कइयों ने “जिन-सूत्रों” के बारे में और जानने की उत्सुकता प्रकट की.
कइयों ने “नवकार” महामंत्र के विराट स्वरुप को जाना.
यहाँ पर भी संतुष्टि नहीं हुई, रोज नयी नयी “डिमांड” आती है.
“रात्रि-भोजन” निषेध की पोस्ट पढ़कर और अन्य बातों से प्रभावित होकर “ऊना” (काठियावाड़) के एक पूरे परिवार ने आजन्म “चौविहार” करने का संकल्प लिया है.
“मासक्षमण” की आराधना करने वालों से निवेदन है कि वे जीवन भर रात्रि भोजन का त्याग करें.
यदि कोई कहे कि शादिओं में हमारे रात्रि भोजन किये बिना चलता नहीं है, तो प्रश्न ये खड़ा होता है कि “”मासक्षमण” किसलिए किया था?
वापस “रात्रिभोजन” करने के लिए?
इसलिए जहाँ तक बन पड़े, जो काम-काजी महिलायें नहीं हैं, उन्हें तो रात्रि भोजन नहीं करना चाहिए.
इससे “जैन-परंपरा” की नीवें गहरी होंगी, जो वर्तमान में नयी पीढ़ी में लगभग “मरणासन्न” की स्थिति में है.
सचमुच जैन धर्म महान है और उसे फॉलो करने वालों के कारण ही उसकी महत्ता प्रकट होती है.
विशेष बात:
कइयों ने “मंत्र” रहस्यों के प्रति “रूचि” प्रकट की.
असल में पाठकों की ज्यादा रूचि तो “मंत्र” पर ही है.
“तीर्थंकरों” द्वारा बताये गए रास्ते को “मंत्र सिद्धि” तक सीमित ना रखें.
मंत्र सिद्धि को “फल” लगा हुआ एक ऐसा पेड़ (या बहुत सारे पेड़) समझें जो “मोक्ष मंजिल” के बहुत पहले आते हैं.
पेड़ के स्वादिष्ट फल को चखकर वहीं पर रुकने वाला कभी मंजिल तक नहीं पहुँच सकेगा.
दुर्भाग्य से आजकल बहुत से दीक्षित भी मंत्र आराधना का प्रयोग एक “तांत्रिक” की तरह कर रहे हैं. खुद तो “डूबेंगे” ही औरों को भी ले “डूबेंगे.”
मंत्र तो मन को “मजबूत” बनाने का सबसे बड़ा साधन है.
“आस्था” को मजबूत” करता है.
“श्वास” को मजबूत करके “स्वास्थ्य” प्रदान करता है.
“स्वस्थ” मनुष्य ही “स्वस्थ” बात कर सकता है,
रोगी में तो बोलने की ही “शक्ति” नहीं होती.
“स्व” में “स्थित” होना है, तो “स्वस्थ” होना पहली शर्त है.
“मंत्र-जप” सबसे पहले यही प्रदान करता है.
बाकी जो और देता है,
उसका “शब्दों” में “वर्णन” करना “संभव” नहीं है.