देव, गुरु और धर्म!
देव वो हैं
जिनके पास परम ज्ञान है,
स्वयंबुद्ध है,
जगत के नाथ हैं,
करुणानिधान हैं,
सभी के मित्र हैं,
जगत के बंधू हैं,
निर्मोही हैं,
वीतराग हैं,
मधुर जिनकी वाणी है,
धीर-वीर-गम्भीर हैं,
राजाओं को प्रतिबोध करने वाले हैं,
गुरुओं को दीक्षा देने वाले हैं,
श्रावकों को भव-पार लगाते हैं,
अभय प्रदान करते हैं,
सम्यक्दर्शन प्रदान करते हैं,
क्या कहें, कितना कहें, कैसे कहें !
हमें तो नमस्कार करना भी हमें नहीं आता !
विशेष:
तो क्या हुआ?
गुरु हैं ना हमारे पास !
1 धर्म का सच्चा स्वरुप समझाने के लिए !
2 अरिहंत का स्वरुप समझाने के लिए !
3 अरिहंत तक पहुंचाने के लिए !
4 अरिहंत से जोड़ने के लिए !
5 अरिहंत की वाणी सुनाने के लिए !
अति विशेष:
गुरुओं में भेद करना बंद करो,
सभी जैन साधू हमारे गुरु हैं.
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