“सिद्धाणं बुद्धाणं” सूत्र से :-
“उज्जिन्तसेलसिहरे दिक्खा नाणं निसीहिया जस्स
तँ धम्म चक्क वट्टिम अरिट्ठ नेमिं नमंसामि”
“श्री अरिष्टनेमि धर्मचक्रवर्ती
जिनका दीक्षा, केवलज्ञान और मोक्ष
गिरनार पर्वत के शिखर पर हुआ है,
उन्हें मैं नमस्कार करता हूँ.”
वर्तमान मेँ एक भी “केवलज्ञानी” भरतक्षेत्र मेँ नहीं है,
फिर भी ऐसे सूत्र हजारों लाखों वर्षों से नहीं,
अनादि काल से जैनों को प्राप्त है.
श्री गिरनार तीर्थ श्री शत्रुंजय तीर्थ का
पांचवां पर्वत है जो अभी उससे अलग है.
आने वाली चौबीसी के सारे तीर्थंकर
गिरनार पर्वत पर ही मोक्ष जाने वाले हैं.
ऐसे तीर्थ के दर्शन हर
“समकितधारी”
अवश्य करना चाहेगा.
गिरनार तीर्थ पर
आबू-देलवाड़ा, राणकपुर और जैसलमेर
जैसी कलाकृति देखने को मिलती है.
तीर्थ परिचय :
श्री नेमिनाथ जी की टूंक (६१ इंच)
मूलनायक श्री नेमिनाथ जी की ये प्रतिमा जी वर्तमान में सबसे प्राचीनतम है.
ये पतिमाजी पिछली चौबीसी के तीसरे तीर्थंकर श्री सागर नाथ जी के काल में
पांचवें देवलोक के ब्रह्मेन्द्र द्वारा बनायीं गयी है.
ये प्रतिमाजी २० कोडाकोड़ी सागरोपम में लगभग १,६५,७५० वर्ष कम करें,
इतनी प्राचीन है.
श्री नेमिनाथ भगवान के निर्वाण के २००० वर्ष बाद
श्री रत्नसार नाम के श्रावक ने
शासनदेवी श्री अम्बिकादेवी की आराधना की.
देवी की सहायता से ये प्रतिमाजी प्रतिष्ठित हुई.
श्री नेमिनाथ भगवान के मुख से ही कहा गया कि
ये प्रतिमाजी १०३२५० वर्ष तक यहीं पर पूजी जायेगी.
मंत्र: ॐ ह्रीं श्री राहुग्रह पूजिताय श्री नेमिनाथाय नमः
मंत्र रहस्य :
श्री नेमिनाथ भगवान को “राहु ग्रह” भी पूजता है.
इस मंत्र के द्वारा “मैं ” भी श्री नेमिनाथ भगवान को नमस्कार करता हूँ.
मतलब हम दोनों (राहु और मैं) दोनों एक को ही पूजते हैं.
अब विचार करें कि राहु आपका मित्र हुआ या नहीं
जब आप दोनों एक ही स्थान पर जाते हैं
और आपके आराध्य भी एक ही है.