मन की शुद्धि ही फल वृद्धि का कारण है.
२४ तीर्थंकरों का एक फोटो
( यदि नहीं हो तो जहाँ जैन उपकरण सामग्री मिलती है, वहां से खरीद लें ).
अन्यथा
अन्नानुपूर्वी (सामान्य भाषा में इसे आनपूर्वी) कहते हैं,
(अभी कुछ जगहों पर “तीर्थ स्थानों के फोटो वाली” अन्नानुपूर्वी मिलती है)
उसमें से पूरे चौबीस तीर्थंकरों के दर्शन कर के :
मन में पूरी प्रसन्नता से ऐसी श्रद्धा रखें कि आप अरिहंतों के पास ही बैठें हैं.
मात्र एक “लोगस्स” बड़े ध्यान से नीचे बताये तरीके से गिनें.
(तीर्थ स्थान वाली अन्नानुपूर्वी के दर्शन करने का लाभ ये है कि
लोगस्स गिनते समय “उसभ” शब्द आते ही अन्नानुपूर्वी में
पालिताना के श्री आदिनाथ की छवि सामने आ जायेगी –
लोगस्स गिनते समय हर तीर्थंकर का ध्यान इसी प्रकार लगाएं)
आप कहेंगे कि इतनी जल्दी छवि मन में आती नहीं है.
एक दिन में नहीं आएगी पर अपने “मन” की शक्ति को
तो आपने मेरी अन्य पोस्ट से जाना ही होगा.
आप भी मानते हैं कि मन बहुत तेजी से भागता है.
उसकी “शक्ति” की परीक्षा करो.
देखें तो सही कि मन कैसे “उसभ” के बाद
“मजिअं” शब्द आते ही
तारंगा के अजित नाथ तक पहुँचता है.
यदि नहीं पहुँचता है तो अभ्यास करें.
फिर वृहत शान्ति स्तोत्र के नीचे लिखे मंत्र का मात्र १२ बार जाप करें.
“ॐ ऋषभ अजित संभव अभिनन्दन सुमति पद्मप्रभ
सुपार्श्व चन्द्रप्रभ सुविधि शीतल श्रेयांस वासुपूज्य
विमल अनंत धर्म शांति कुन्थु अर
मल्लि मुनिसुव्रत नमि नेमि पार्श्व वर्द्धमानान्ता
जिना : शांता: शान्तिकरा
भवन्तु स्वाहा ||”
मंत्र रहस्य :
जिनके राग द्वेष मिट गए हों,
ऐसे पुरुषोत्तम अरिहंतों के पास “बैठने” से
आप भी तुरंत ही शांति का आनंद ले सकेंगे.
प्रश्न:
आपने इतनी बार मंदिर में दर्शन किये हैं.
प्रभु की मूरत को भी निरखा है – विशेष कर जब आंगी बहुत सुन्दर हो.
पर कभी मन में ये भाव आया कि
अब तो मेरी और तीर्थंकर की दूरी मात्र
5 फुट है!
व्यावहारिक ज्ञान :
व्यवहार में आपने देखा होगा की कई भोले लोगों का
काम सहज ही बन जाता है और
व्यापार में नफा भी खूब कमाते हैं.
इसका कारण है वे दूसरों के बारे में
और इधर उधर की बात
करना नहीं जानते.
तो फिर आप भी तीर्थंकरों के आगे एकदम “भोले” बन जाओ
सारे काम सहज हो जाएंगे.
(मंदिरों में भी लोग उस्तादी कैसे करते हैं,
उसके बारे में आने वाली पोस्ट पढ़ें)