“स्वाध्याय” क्या है ?
स्वाध्याय है:
१. पढ़ना
२. प्रश्न पूछना
३. पुनरावर्तन करना (revision)
४. सूत्र अर्थ का चिंतन करना
५. धर्मकथा : कहना और पढ़ना
माँ सरस्वती के हाथ में भी शास्त्र और माला है. “वीणा” के स्वर और “तीर्थंकरों” की “वाणी” के सम्बन्ध की जानकारी के लिए jainmantras.com की आगे आने वाली पोस्ट पढ़ें.
1. गौतमस्वामीजी ने अष्टापद तीर्थ पर तिर्यंच जृम्भक देव को पुण्डरीक-कण्डरीक अध्ययन सुनाया. वो देव उसी अध्ययन का रोज 500 बार स्वाध्याय करने लगा. दूसरा जन्म उसका व्रजस्वामी के रूप में हुआ और पालने में ही 11″ अंग” कंठस्थ किये (साध्वीजी के उपाश्रय में, क्योंकि जन्म से ही इतने रोते थे की उनकी माँ ने उनके पिता को गोचरी में वोहरा दिया ये कहकर कि खुद तो साधू बन गए और आफत मेरे सर पर छोड़ गए).
2. मंत्री कदर्पी की प्रेरणा से गुर्जर नरेश कुमारपाल ने राजनीति का अभ्यास शुरू किया.
राजा रोज दोपहर को शास्त्रीजी के पास बैठने लगे.
“कामन्दक” का नीति शास्त्र पढ़ रहे थे.
पंडितजी ने कहा : “मेघ (clouds) से भी विशेष राजा है.”
उसी समय मंत्री का भी आना हुआ.
योगानुयोग बात कुमारपाल राजा बोले : “राजा के साथ “मेघ” की कितनी अच्छी “औपम्य.”
“उपमा” शब्द के स्थान पर “औपम्य” शब्द सुनकर मंत्री को झटका लगा.
पंडित जी के जाने के बाद राजा को कहा : राजा बिना धरती चले पर मूर्ख राजा कभी न चले – ५८ वर्ष की उम्र और वो भी राजा को यदि कोई ऐसे शब्द कहे तो क्या हाल हो?
पर राजा को मंत्री पर विश्वास था इसलिए “व्याकरण” सीखना शुरू किया.
थोड़े समय में ही संस्कृत पर प्रभुत्व ले लिया.
फिर “आत्म निंदा द्वात्रिंशिका” की संस्कृत में रचना भी की.
3. जिनशासन कहता है कि एक रात्रि स्वेच्छा से मन,वचन और काया से ब्रह्मचर्य पालने से 108 उपवास का लाभ होता है. स्थूलिभद्र का नाम ८४ चौबीसी तक चलने का एक मात्र कारण ब्रह्मचर्य है.
चक्रवर्ती के घोड़ों को भी ब्रह्मचर्य पलवाया जाता है, इसीलिए तो इतने ताकतवर होते हैं.
मरकर वो आठवें देवलोक में जाते हैं और ६४००० रानियों का “सेवन” करने वाले चक्रवर्ती यदि अंत में दीक्षा ना लें तो मरकर सातवीं नरक में भी जाते हैं.
आगे “विजय सेठ और विजया सेठानी” का “चरित्र”.…