मनुष्य हर पल ध्यान में ही रहता है ,
ध्यान के बिना वह रह नहीं सकता.
आर्तध्यान
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– रोना, डिप्रेशन में होना, चिंता करना, बार बार अशुभ होने की आशंका
निरंतर ऐसा ध्यान करने से व्यक्ति को ये ध्यान “सिद्ध” हो जाता है और रोज नए प्रसंग बनते हैं:
– रोने के, चिंता करने के!
रौद्र ध्यान
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– किसी के प्रति ईर्ष्या, क्रोध, उसे नीचा दिखाने के भाव, झूठ बोलकर उसका अपमान कराने के भाव, अपने रास्ते से हटा देने के भाव, जान से मार देने के भाव, आदि
अपना पैसा किसी ने हड़प लिया हो तो आर्त ध्यान और रौद्र ध्यान दोनों एक साथ भी होते हैं – जीवन में ऐसे प्रसंग बार बार हो रहे हों, तो बहुत सावधान होकर धर्म ध्यान से निवारण करना चाहिए.
ये दोनों प्रकार के विचार स्वयं को और अधिक दुःखी करने वाले ध्यान हैं.
धर्म ध्यान
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– जिन सूत्र, स्तोत्र, मंत्र साधना, भजन, धर्म चर्चा, प्रभु पूजा, सामायिक आदि से व्यक्ति अशुभ चिंतन से बाहर आता है और निर्भय हो जाता है.
शुक्लध्यान
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– सिर्फ आत्म चिंतन है, उसी में खो जाना है, अन्य कोई विषय नहीं रहता.
मोक्ष निश्चित बनता है.
महावीर मेरा पंथ
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