जिन-मंदिर (jain temple) के “प्रांगण” (lobby) से होते हुवे
“गर्भ-गृह” में “भगवान्”
के दर्शन करना वैसा है
मानो व्यक्ति अपने “शरीर-प्रांगण” से होते हुवे
अपनी “आत्मा” के “दर्शन” करता हो.
(ये बहुत सारगर्भित बात है, इसे बार बार पढ़ें).
After entering in the lobby of a jain temple, one feels like his own “soul darshan” when he reaches to the main place where the “idol” of “Arihant” is situated.
“आत्म-तत्त्व” को “स्पर्श” (to touch the soul element) करना ही
“मनुष्य-जन्म” का परम लक्ष्य है.
अब वो चाहे
“ध्यान” के माध्यम से हो,
“तप” के माध्यम से हो,
“जप” के माध्यम से हो,
“गुरु” के माध्यम से हो,
या
“देव-दर्शन” के माध्यम से हो.
विशेष:
इनमें सबसे सरल “देव-दर्शन” (Dev Darshan) है
क्योंकि वो हमारी सुविधानुसार हो सकता है.