श्री जिनदत्तसूरी ने 700 वर्ष पहले संस्कृत में “विवेक विलास” नामक ज्योतिष ग्रन्थ लिखा है. ज्योतिष के अलावा जीवन में माता-पिता, मृत्यु, सगे-सम्बन्धी के साथ रखने योग्य विवेक और धंधे और पैसे की सुरक्षा के लिए क्या करना चाहिए, ये सब इस ग्रन्थ में बताया है.
उनका कहना है:
१. खोटी रीति से कमाया हुए धन का अंत में “नाश” होता है. (जिनको इस बात पर विश्वास न हो, वो स्वयं खोटी रीति से पैसा कमाना चाहते हैं – श्री जिनदत्तसूरी से बढ़कर कोई “आप्त-पुरुष” इन सालों में नहीं हुआ – ओसवाल वंश की जातियों का उद्धार श्री जिनदत्तसूरी ने ही किया है – अब वो ही इस बात को ना मानें, तो वो “पिता” की “आज्ञा” को ही नहीं मानने वाले हैं – “धर्म” के मूल सिद्धांत कभी नहीं बदलते भले ही जमाना बदल गया हो ).
२. जहाँ मित्रता करने की “इच्छा” ना हो, वहीँ पैसे का व्यवहार करना चाहिए. (इसका मतलब ये नहीं है कि “शत्रु” से पैसे का व्यवहार करना चाहिए और आवश्यकता के समय “मित्र” की सहायता बिलकुल नहीं करनी चाहिए – परिस्थितियों को देखते हुवे उतनी सहायता तो अवश्य ही करनी चाहिए जितनी रकम हम “भूल” सकें).
३. “निर्धन” को कभी किसी की निंदा नहीं करनी चाहिए. (कुछ लोगों को पैसे वालों की निंदा करने में बड़ा आनंद आता है – उनका खा-पीकर भी उन्हें ही कोसते हैं, ऐसा शादी-विवाह के प्रसंग में देखने को बहुत मिलता है-वो ये भूल जाते हैं कि क्यों “लक्ष्मी” उस व्यक्ति पर ही प्रसन्न है और खुद पर नहीं).
४. सट्टे से कमाया हुआ धन – इसका “कालापन” कभी नहीं जाता. अंत में कुल का सर्वनाश होता है. (अनुभव सिद्ध है).
५. जितना खुद के पास “धन” हो, “लोक-व्यवहार” उसी के अनुसार करना चाहिए अन्यथा व्यक्ति “खेंच” में रहता है. ब्लड प्रेशर, शुगर और हार्ट की बीमारियां इन्हीं कारणों से आती है.
६. जिसको “धन” की वृद्धि करनी है (किसको नहीं करनी है?), उसे पशु-पक्षिओं को कभी दुःख नहीं देना चाहिए. तिर्यंच होते हुवे भी वर्तमान (पंचम काल) में पक्षी सबसे अधिक सुखी हैं, उन्हें किसी की भी गुलामी नहीं करनी पड़ती.
७. ज्योतिषशास्त्र (खोटे ज्योतिषि इसमें शामिल नहीं हैं), सामुद्रिकशास्त्र (शरीर की बनावट को देख कर जानना), नीतिशास्त्र (जैसे चाणक्य-नीति) पर कभी “द्वेष” नहीं करना.
८. अपने कल्याण के लिए “महापुरुषों” के पास बैठना.
९. व्यवसाय से लाभ को चार भागों में बाँटना : १. बचत २. धार्मिक कार्यों में ३. भोग में और ४. कुटुंब के पोषण में. (आज बचत का “नाम” सबसे बाद में लिया जाता है, इतना उल्टा जीवन है और फिर भी हम अपने को जैनी कहते हैं).
१०. पुत्री से खूब बड़ी उम्र के व्यक्ति को अपनी कन्या ना देना. (कीर्ति का नाश होता है और पुत्री भी सुखी नहीं रहती, भले ही खूब धनी हो – आजकल कुछ परिवारों में पुत्री का पिता ये देखता है की लड़के वाले के पास खुद का “बड़ा” मकान है या नहीं, लड़के की क्या संगत और “शौक” है, उसकी परवाह नहीं करता (खुद ही वैसा है, इसलिए ये बात “कॉमन” मानता है ).
११. पुराने “वाहन” पर नहीं जाना.
१२. नदी में एकाएक नहीं उतरना.
१३. जानवर से दस हाथ दूर रहना.
१४. जो व्यक्ति “लक्ष्मी” का “मद” करता है, उसे दूसरे भव में “लक्ष्मी” “मदद” नहीं करती.
१५. जो प्रसिद्धि के लिए “दान” करता है, उसे “व्यसनी” समझना.
बुद्धि सभी में होती है, विवेक ही नहीं होता इसलिए व्यक्ति भेड़-चाल को अपनाता है.