एक ज्योतिषी को किसी की जन्म-कुंडली देखने पर तब तक बोलने के अधिकार नहीं है, जब तक जातक स्वयं या उसके परिवार वाले उससे सम्बंधित प्रश्न ना करे.
“ज्योति” शब्द से “ज्योतिषी” शब्द से बना है. “ज्योतिष” समाज को “राह” दिखाने के लिए है, ना कि डराकर और उल्टी-पट्टी पढ़ाकर पैसे ऐंठने का साधन हैं.
यदि कोई ऐसा कार्य करता है, वो निश्चित रूप से दुखी रहता है. वर्तमान में ज्यादातर जो “ज्योतिषी” बने हैं, वो बिना साधना के बने हैं. मात्र शास्त्र पढ़ लेने से “ज्ञान” प्रकट नहीं होता. “ज्ञान” साधना से ही प्रकट होता है. पर साधना कैसे हो और किसलिए हो, ये सबसे महत्त्वपूर्ण प्रश्न है.
12 राशि और 9 ग्रह : एक जन्म कुंडली में 12*9 = 108 Combinations होते हैं.
अरिहंत के 12 गुण और 9 कार यानि 12*9 = 108
( यदि “अरिहंत” को निकाल दें, तो जैन धर्म = शून्य).
जैन धर्म का अस्तित्त्व है तो अरिहंतों के कारण!
इसीलिए “समस्या-निवारण के लिए एक माला 108 मनको की फेरी जाती है.
ताकि समस्या के जितने भी Combinations हो सकते हों, वो सब के सब “शुद्ध” हो जाएँ और फिर “शुभ” में कन्वर्ट हो जाएँ.
108 मनको की माला “फेरी” जाती है.
“फेरना” मतलब ख़राब समय को “सीधा ” करना और
यदि समय अच्छा चल रहा है,
तो इसका अर्थ है “फेर-ना” यानि जैसा चल रहा है, वैसा ही रहे !
है ना जोरदार बात -मंत्र विज्ञान की !
ज्योतिष बहुत गूढ़ विषय है. पर फिर भी साधना करने वाला ज्योतिषी अपने “ज्ञान” से ज्यादा और “जन्म-कुंडली” का आधार कम लेता है. “कुंडली” व्यक्ति की सारी बातें नहीं बता सकतीं. (आज आपने क्या खाना खाया है या कितने बजे उठे, ऐसी निरर्थक बातें यदि कोई पूछकर ज्योतिष को चैलेंज करे, तो वो कुतर्क है. हाँ, महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने में ज्योतिष अवश्य सहायक होता है.
ज्योतिष “योग” की बात करता है, हो ही जाने की बात नहीं करता.
“ज्योतिषी” “मुहूर्त्त” भी निकालता है, तो प्रभु-स्मरण करके ही!
ना कि “स्वयम्” ने ऐसा कहा, इसलिए ऐसा हुआ, कोई ज्योतिषी ऐसा दावा करे, तो उससे “दूर” रहें.
गुरु वशिष्ठ ने राजा राम का मुहूर्त्त निकाला राज्याभिषेक का.
और उन्हें मिला क्या?
चौदह वर्ष का वनवास!
क्या गुरु वशिष्ठ से ऊँचा कोई ज्योतिषी वर्तमान में इस दुनिया में है?