“भरहेसर बाहुबली
अभयकुमारो अ ढंढण कुमारो”
अभयकुमारो अ ढंढण कुमारो”
सवेरे प्रतिक्रमण के समय
बोली जाने वाली इस सज्झाय (स्वाध्याय) में
बोली जाने वाली इस सज्झाय (स्वाध्याय) में
प्रथम नाम
श्री भरत चक्रवर्ती का आता है.भरत चक्रवर्ती “इन्द्रियजित” होने के लिए
इतने जागरूक थे कि भरी सभा में,
जहाँ कई राजा उनकी आज्ञा में उपस्थित हों,तो भी उनके स्नेही बंधू अवसर आने पर
उन्हें बार बार इस बात को याद दिला सकते थे किराजन भले ही आप विश्व विजेता हो,
श्री भरत चक्रवर्ती का आता है.भरत चक्रवर्ती “इन्द्रियजित” होने के लिए
इतने जागरूक थे कि भरी सभा में,
जहाँ कई राजा उनकी आज्ञा में उपस्थित हों,तो भी उनके स्नेही बंधू अवसर आने पर
उन्हें बार बार इस बात को याद दिला सकते थे किराजन भले ही आप विश्व विजेता हो,
फिर भी अभी तक इन्द्रिओं से पराजित हो.विशेष :जो चक्रवर्ती होकर बाद में दीक्षा नहीं लेते,
वो नियम से नरक जाते हैं.
वो नियम से नरक जाते हैं.
भरत चक्रवर्ती ने केवलज्ञान
बिना दीक्षा लिए प्राप्त किया.
कारण:
वो पहले से ही “आत्मा” के प्रति जागरूक थे
और जिन शासन की सेवा में अष्टापद तीर्थ में जिन बिम्बों की प्रतिष्ठा
और पालिताना तीर्थ का पहला उद्धार भी किया.
इस सज्झाय में १०० उत्कृष्ट आत्माओं का वर्णन है.
जिनका क्रमवार वर्णन उपलब्ध होगा:
फोटो: १२ वीं शताब्दी का है
(भरत बाहुबली युद्ध का)