जैन सामायिक में मंत्र, यन्त्र और तंत्र
तीनों का प्रयोग एक साथ होता हैं.
तीन महत्त्वपूर्ण बातें :
जिन धर्म:
देव, गुरु और धर्म
ग्राह्य:
दर्शन, ज्ञान और चारित्र
शरीर :
मन, वचन और काया
साधन :
मंत्र, तंत्र और यन्त्र
चेतना के अभाव में ज्यादातर लोग
सामायिक का आनंद ना लेकर
४८ मिनट का समय कब पूरा हो,
उसका इंतज़ार करते हैं.
अब सामायिक की व्यवस्था को जानें
स्वयं भगवान महावीर ने
पूनिया श्रावक की सामायिक को अमूल्य बताया है.
उसके फल को किसी भी और तरीके से प्राप्त नहीं किया जा सकता,
सिर्फ उस फल को सामायिक कर के ही प्राप्त कर सकते हैं.
आज एक नयी सोच के साथ सामायिक के बारे में जाने.
(ये व्यवस्था तीर्थंकरों ने की हैं,
हमें बस जानने की फुर्सत निकालनी होगी).
१. तंत्र :
आसन, मुहपत्ति (कुछ सम्प्रदायों में मुहपट्टी),
चरवला, माला, ठवली
(तंत्र का अर्थ है : व्यवस्था या सिस्टम)
२. यन्त्र : सिद्धचक्र
(गोल स्वरुप में जिसे सामान्य भाषा में “गटटाजी” कहते हैं)
यन्त्र का सामान्य अर्थ है : मशीन
३. मंत्र :
सामायिक नवकार से शुरू होती है
और पूरी भी नवकार से ही होती है.
मंत्र वो सूत्र हैं जिन्हें नियम से पूरा किया जाता है.
जैन धर्म का प्राण है : नवकार!
और उनमें से भी पहला पद “नमो अरिहंताणं”
ही उसे अन्य धर्मों से अलग करता है.
अन्य धर्मी भी सिद्ध हुए हैं (सिर्फ जैनी ही नहीं),
आचार्य, उपाध्याय और साधू अन्य धर्म में भी होते ही हैं).
अब रही सबसे महत्त्वपूर्ण बात:
जब तंत्र, यन्त्र और मंत्र का प्रयोग एक साथ किया जाता है
तो उससे डायनामिक पावर पैदा होता है.
और
1. उसके साथ तप का तेज हो,
2. तीर्थंकरों की छवि का स्मरण हो
(काउसग्ग के समय लोगस्स का ध्यान लगाते समय
और प्रकट लोगस्स बोलते समय
एक एक तीर्थंकर की “प्रतिमा” मन में समाती हुई दिखे –
लोगस्स बोलते समय जैसे ही उषभ बोलने में आये
तो पालिताना के आदिनाथ की छवि आये,
“पासं “बोलना आये तो पार्श्वनाथ भगवान की छवि आये….
– लोगस्स बोलते समय जल्दबाज़ी ना करें),
3. गुरु का साथ हो,
(अविधि से बचने के लिए)
तो फिर कहना ही क्या!
विशेष:
सूत्र बोलने में जल्दबाज़ी जरा भी ना करें,
इससे सामायिक जल्दी आने वाली नहीं है. 🙂