“ध्यान” करते हुवे भी “ध्यान” नहीं है !
पढ़कर चौंकना मत !
अब तक जीवन में सामायिक और प्रतिक्रमण करते समय
1 लोगस्स से लेकर 40 लोगस्स के काउसग्ग किये होंगे.
(आज ना किये हों तो अभी कम से कम एक लोगस्स का काउसग्ग कर लेना, भले सामायिक ना की हो).
अब आगे:
लोगस्स के काउसग्ग में “ध्यान” किसका हुआ?
या तोते की तरह “रट” दिया?
एक भी “तीर्थंकर” का “चेहरा” दिखा?
देखने की “कोशिश” भी की?
नहीं ना !
तो फिर “वन्दे” और “वन्दामि” शब्द पर आकर रुके क्यों नहीं?
नमस्कार किसे हुआ?
नमस्कार कैसे हुआ?
उनका यदि कभी मुख दिखा
तब भी नमस्कार का भाव आया?
ये चिंतन करेंगे तो पता पड़ेगा कि
आज तक प्रतिक्रमण सूत्र हमने वैसे बोलें हैं
जैसे किसी को “नींद” में बोलने की बीमारी हो !
जब “भाव” से, “चेतना” से, “ध्यान” से
कुछ बोला ही ना हो,
तो “ध्यान” तो कहाँ से लगेगा?
हो गया “काउसग्ग” !
विशेष:
आनंद रहित धर्म क्रिया ना तो स्वयं में आनंद भरती है
और ना ही दूसरों को धर्म क्रिया करने के लिए प्रेरित करती है.
हाँ, “डंडे” के जोर पर ये क्रिया जबरदस्ती हो रही है,
क्योंकि “नरक” का “डर” मन में जो घुसा है.
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