दिवाली पर साधना – 1

दिवाली पूजन वैसा ही करें, जैसा परिवार में आप करते आये हैं.
क्यूंकि जो चीज “विरासत” में मिली है, वो अनमोल होती  है. .
इससे “पूर्वजों” के प्रति भी “अहोभाव” होता है.
इससे घर के देवी देवता भी “खुश” रहते हैं.

 

असल में तो “दिवाली” एक दिन की नहीं होती.
ये दशहरा के बाद  “दस्तक” (invitation) दे देती है.
“दशहरा” की साधना दस दिन तक चलती है.
“दिवाली” की साधना 25 दिन तक चलती है.

यहाँ “त्यौहार” शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है.
जैन धर्म में “पर्व” शब्द का उपयोग किया गया है.

“पर्व” शब्द से ही “पर्वत” बना है.
यानि “साधना” से “चढ़ा” जाता है ऊपर की ओर!

 

शंका:
त्यौहार और पर्व में क्या फर्क है?
उत्तर:
त्यौहार तो महज एक “आकर्षण” है – मौज मस्ती का.
पर्व है : “मन” के भावों को “बढ़ाने” का.

श्रावक वो हैं जो दीक्षा लेने के लिए अपने को “योग्य” नहीं पाते.
अरिहंतों ने इसलिए उनके लिए “विशेष” व्यवस्था की है.
खुद साधू-साध्वी कहते हैं कि “संघ” हमारा “माई -बाप” है.
अब जरा विचार करें कि जो संघ गुरुओं का भी “माई -बाप” है
तो उसका “व्यवहार” जैन धर्म के प्रति कितना ऊँचा होगा!

 

ऐसी व्यवस्था किसी और धर्म में नहीं मिलेगी.

दिवाली मात्र पटाखे फोड़ने का त्यौहार नहीं है.
दिवाली है राग-द्वेष फोड़ने का.
अँधेरे में ज्ञान प्रकट करने का.
इसीलिए तो “ज्ञानपंचमी (लाभ पंचमी) मनाई जाती है.

दिवाली मात्र सफाई का त्यौहार नहीं है.
दिवाली है “आत्म-शुद्धि” का!
दिवाली के दिन भगवान महावीर का “निर्वाण” हुआ है.
दिवाली की ही रात्रि को “अनंत लब्धिनिधान श्री गौतम स्वामी” को “केवल ज्ञान” हुआ.

 

दिवाली के दिन जप अवश्य करें:
जिस दिन पूरे भारत में दिए जलते हों, उस दिन कोई भी किसी के भी प्रति “दुर्भावना” नहीं रखता, ऐसा “पवित्र पर्व” है ये!
सभी के “मन” में “खुशियां” होती हैं.
ऐसे दिन पर “जप” करने का फल कई गुना हो जाता है.

आगे पढ़ें: दिवाली के दिन “महालक्ष्मी” पूजन करते समय मन में कैसा भाव रखें?

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