दिवाली पर साधना – 2

महालक्ष्मी जी की पूजा में लक्ष्मी, सरस्वती और गणेश तीनों साथ में होते हैं.
मन में हमारा ज्यादातर ध्यान “लक्ष्मी” पर ही होता है.
फिर ये  भी सत्य है कि हम मन में ये “धारण” ही नहीं कर पाते कि “वास्तव” में
ये लक्ष्मी जी का फोटो है या साक्षात लक्ष्मी!
क्या हमने कभी ये फील किया है कि लक्ष्मीजी हमारे घर “विराजमान” हैं?
और उन्हें “विराजमान” किसने किया?
उत्तर  है : हमने!
मतलब हमने “विराजमान” किया “लक्ष्मीजी” को …..अपने “घर!”
ये भावना जितनी मजबूत होगी, उतना ही “लाभ” होने वाला है…खुद को!
यदि ये भावना ना आ पायी, तो फिर पूजा करने का मतलब ही क्या है!

मानो कि हम तीन मित्र किसी के “बुलाने” से उसके घर गए.
एक मित्र को तो उसने काफी मान सम्मान दिया
और मुझे थोड़ा सम्मान दिया और
आपको  तो बस पुछा : ठीक  हो ना! फिर बात ना की हो तो आपको कैसा लगेगा?

 

इसी प्रकार तीन मेहमान घर में आये हों, सरस्वतीजी, महालक्ष्मीजी और गणेश जी  .
सच में बताना “सरस्वती” जी को आपने कभी उतना सम्मान दिया है जितना महालक्ष्मीजी को?
यदि नहीं दिया है तो “पूजा” श्रेष्ठ कैसे की जाए, उसकी सद्बुद्धि कहाँ से आएगी?
और पूजा “श्रेष्ठ” नहीं की हो, तो रिजल्ट भी कैसा आएगा, हम जानते ही हैं!

सरस्वती स्तोत्र सबसे पहले होगा.
(बुद्धि के बिना कौनसा कार्य सही हो सकेगा)?
फिर महालक्ष्मी का
(ठाठ से पूजन करने के लिए)
फिर गणिपिटक  (यानि गणेश) यक्ष का.
(ऋद्धि सिद्धि प्राप्त करने के लिए)

 

जैन आचार्यों द्वारा की जाने वाली “सूरी-मंत्र” की आराधना  भी
पहले सरस्वती की,
फिर त्रिभुवनस्वामिनी की,
फिर महालक्ष्मी की,
फिर गणिपिटक यक्ष की
और फिर “गौतमस्वामीजी” की होती है.

अब शुद्ध मन से सरस्वती का स्मरण करें फिर
सरस्वती  की स्तुति बोलें.
“वाग्वादिनी नमस्तुभ्यं वीणा पुस्तक धारिणी”
(अगली पोस्ट में देखें और jainmantras.com  के फेसबुक अकाउंट से डाउनलोड कर लें).

 

फिर महालक्ष्मीजी का स्तोत्र बोलें:
“ॐ नीर निर्मल सुगंध अखंड  अक्षत पुष्पजं
दीप धुप नैवेद्य पय घृत शर्करायुत फलादिकम् ||”

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आगे पढ़ें: श्री गण पिटक यक्ष की स्तुति…. दिवाली पर साधना – 3

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