बहुत से लोगों को ये भ्रम है कि वो “ध्यान” नहीं कर पाते.
जबकि वास्तविकता ये है कि
“ध्यान” तो सभी रोज करते ही है.
“कैसा” ध्यान करते हैं वो बात अलग है.
“ध्यान” का मतलब
“आँखे बंद करना” नहीं है.
आप वर्षों से आँखें बंद करके “काउसग्ग” कर रहे हो.
तब तो अब तक आप
“ध्यान” की बहुत “ऊंचाई” तक पहुँच जाने चाहिए थे.
पर ऐसा “खुद” को ही महसूस नहीं हो रहा.
अब आपको शंका हो रही होगी कि
“ध्यान” यदि आँखें बंद कर के नहीं होता है
तो क्या “खुली आँखों” से होता है?
कुछ “जाने-माने” ध्यान के शिविर लगाने वाले
तथाकथित गुरु “ध्यान” को “समय” में बांटना
भी बताते हैं.
जैसे ५ मिनट इसका ध्यान करो
और कुल २५ मिनट ध्यान करो.
मूल प्रश्न ये हैं कि क्या “ध्यान” करने वाले
व्यक्ति को “समय” का भान रहता हैं?
यदि “समय” का “ध्यान” रखते हुए ही
“साधना” करना है,
तो आज रोज जो सामायिक करते हैं,
वो तो “एक मिनट” भी सामायिक देरी से नहीं पारते,
इतना “ध्यान” रखते हैं.
उपरोक्त पैराग्राफ में मैंने “ध्यान” शब्द का दो बार प्रयोग किया हैं.
इस पर आपका “ध्यान” गया ही होगा.
व्यावहारिक जीवन में हम दिन में
कई बार अपने बच्चों को ये सीख देते हैं की “ध्यान” से पढ़ना.
अपने लोगों को आदेश देते हैं की काम “ध्यान” से करना.
प्रश्न ये हैं कि
मैं ध्यान क्यों करूँ?
किसका करूँ?
कब करूँ?
कितना करूँ?
कैसे करूँ?
इन सब बातों का जवाब है :
सब बातों को जान कर भी ज्यादातर को
“करना” कुछ नहीं है.
मात्र “हाथ पर हाथ” धरे बैठे रहना है.
परन्तु “जैन धर्म” यहाँ पर भी आपको
“हाथ पर हाथ” धरे बैठे रहने की “विधि” बताता है:
बिना चप्पल-जूते पहने
जैन मंदिर पहुँचो.
अब “तीर्थंकरों” की प्रतिमाजी को गौर से देखो
और
“पद्मासन” लगाकर
“हाथ पर हाथ” धरकर बैठ जाओ.
वहीँ पर जहाँ “ध्यान” लगाना चाहिए,
अपने आप लग जाएगा.
(ये बात “प्रैक्टिकल” करके देखोगे,
तभी अच्छी तरह समझ में आएगी.
फिर किसी से “ध्यान” कैसे करें,
पूछने की जरूरत नहीं रहेगी).
फोटो:
“सहस्त्रफ़णा” पार्श्वनाथ भगवान
श्री वासुपूज्यस्वामी जैन मंदिर
गोपीपुरा, सूरत