जैन मन्त्रों की महिमा इस बात से पता पड़ती है कि कलियुग को देखते हुवे वैदिक मन्त्रों को “शिवजी” ने कीलित (iterrupted,banned) कर दिया है, ऐसा खुद उनके अनुयायी कहते हैं. जैन मन्त्रों पर ये बंधन लागू नहीं पड़ता. इसीलिए वर्तमान में बहुत सी वैदिक मन्त्रों की पुस्तकों में भी जैन मन्त्रों का प्रयोग करने पर बल दिया गया है.
पर उनके सामने समस्या ये है कि यदि वो “अर्हत” को मानते हैं,
तो फिर स्वयं को “वैदिक” कह नहीं सकते.
(और अर्हत पर श्रध्दा हुवे बिना जैन मंत्र सिद्ध नहीं होंगे.)
कुछ अति प्रभावशाली बीजाक्षरों का प्रयोग जितनी सहजता से जैन धर्म में किया गया है उतना वैदिक धर्म में नहीं.
जितनी गहराई जैन धर्म के मन्त्रों की है, उतनी वैदिक धर्म में नहीं.
इसका कारण ये है कि वैदिक धर्म सृष्टि का निर्माता “ईश्वर” को मानते हैं,
जैन धर्म के अनुसार ये “काल” का प्रभाव होता है, इससे ज्यादा कुछ नहीं.
मजे कि बात तो ये है कि “वैदिक धर्म” योग साधना के बल पर काल पर विजय पाने की बात करता है
परन्तु वास्तव में “अपवाद” को छोड़कर ये होता नहीं है.
दुविधा ये है कि हमें जैन धर्म कि गहराइयों का पता नहीं है.
(हमारे आज के बहुत से “गुरुओं” को भी जैन धर्म की गहराई का पता नहीं है,
यदि होता तो “सम्प्रदायवाद” हावी हो ही नहीं पाता ).
जैन मन्त्रों के बारे में जितना खुलकर jainmantras.com में लिखा जा रहा है, उतना कहीं और किसी भी पुस्तक में लिखा हुआ नहीं है और ना ही कोई गुरु इतनी आसानी से बताने वाला है.
जैन मन्त्रों के बारे में जितना अन्य पुस्तकों में लिखा हुआ है, वो हर किसी के समझ में आने वाला भी नहीं है.
यदि गुरु के सान्निध्य में साधना की जाती है तो भी साधक अपने सारे अनुभव गुरु को बताने में असमर्थ होता है.
गुरु खुद भी अपना सारा अनुभव शिष्य को चाहकर भी नहीं दे सकता.
मन्त्रों की पुस्तक पढ़ने से मंत्र रहस्य का पता भी नहीं चलता.
मंत्र-रहस्य जानना है तो एक मात्र उपाय है : साधना