श्री हेमचन्द्राचार्य जी ने भगवान आदिनाथ की स्तुति इस प्रकार की है :
“आदिमम् पृथिवीनाथ-मादिमम् निष्परिग्रहम्
आदिमम् तीर्थनाथम् च, ऋषभस्वामिनं स्तुम: ||प्रथम राजा, प्रथम मुनि और प्रथम तीर्थपरति-ऐसे श्री ऋषभस्वामी की स्तुति करता हूँ.
किसी भी “मंगल कार्य” की शुरुआत करने से पहले नवकार गिनने के बाद ये स्तुति करें. उनके उत्कृष्ट कुल को भी याद करें. (उनके उत्कृष्ट कुल को जानने के लिए jainmantras.com की अन्य पोस्ट पढ़ें. -हमारा भी उनसे “सम्बन्ध” रहा है, हमारा “Direct Connection” भगवान महावीर से है और भगवान महावीर का सम्बन्ध भगवान आदिनाथ से रहा है. इस दृष्टिकोण से भी! ऐसा चिंतन करें. फिर देखो मन के भाव कितने ऊँचे होते हैं! आप अपने को धन्य समझने लगेंगे. दूसरे जितने भी जैन बंधू हैं वो भी “अपने” लगने लगेंगे. (अपने हैं ही).
१. श्री पुण्डरीक गणधर (ऋषभदेव के गणधर) ने 1,25,000 श्लोक से “श्री पालिताना तीर्थ महिमा” की थी.
२. श्री महावीर स्वामी की आज्ञा से श्री सुधर्मा स्वामीजी गणधर ने मनुष्यों की आयु कम जानकर इसे 24,000 श्लोक तक सीमित किया.
३. फिर शत्रुंजय तीर्थ का उद्धार करनेवाले श्री शिलादित्य राजा के आग्रह से, बौद्धों के मद को “स्याद्वाद” से जीतनेवाले, “राजगच्छ मंडन” श्री धनेश्वरसूरीजी ने “श्री शत्रुंजय माहात्म्य” वल्लभीपुर में रचा.
४. इसमें से भी “सारभूत” तत्त्व निकालकर “श्री शत्रुंजय माहात्म्य सार” का अनुवाद श्री कनकचन्द्रसूरीश्वरजी महाराज ने किया और उसका भी “संक्षिप्त (शार्ट) अनुवाद श्री वज्रसेनविजयजी ने किया है.
तीर्थ महिमा :
१. इस तीर्थ का “ध्यान” करने से 1000 पल्योपम जितना “कर्म” नाश होता है. ये आप “रोज” घर पर भी कर सकते हैं अन्यथा मंदिर में यदि श्री शत्रुंजय का पट्ट लगा है तो वहां रोज दर्शन कर सकते हैं.
ध्यान करने के लिए आपको पूरा एकाग्रचित्त होकर तलहटी, बाबू निवास का मंदिर,……..भीम पोल…होते हुवे…आदिनाथ भगवान के मूल नायक तक पहुँच कर …..वहां नेवैद्य (प्रसाद) चढ़ाकर…चैत्यवंदन करना है…शत्रुंजय की भाव यात्रा करना है.
२. इस तीर्थ पर “अभिग्रह” धारण करने से 1,00,000 पल्योपम जितना “कर्म” नाश होता है.
३. इस तीर्थ की और चलने पर 1 सागरोपम के पापों का नाश होता है.
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Continued शत्रुंजय (पालीताणा) महिमा-2