जैन धर्म में
सबसे पहले
आत्म-चिंतन (वैराग्य) की बात कही जाती है.
फिर
आत्म-बल (चारित्र) की बात कही जाती है.
फिर
आत्म-कल्याण(केवल ज्ञान) की बात कही जाती है.
और फिर
आत्मा की आत्मा में स्थित (मोक्ष) होने की बात कही जाती है.
आत्मा अजर अमर है, ये सभी धर्म स्वीकार करते हैं.
“शरीर” की स्थिति तो “भयजनक” है
क्योंकि इस जीवन को तो “क्षण-भंगुर” कहा गया है.
फिर सारा प्रपंच और उद्यम :
“शरीर” तक ही सीमित क्यों रखा जाए?
ये जैन धर्म का उपदेश कहता है.
संथारा पर कोर्ट की रोक
वास्तव में जैनों को एक होने के लिए की गयी है.
क्योंकि जब जब जैन धर्म पर “संकट” आया है,
तब तब धर्म की प्रभावना हुयी है.
ये बताता है की सोना तप कर ही “चमकता” है.
सर्वज्ञ भगवान महावीर भी कह गए हैं कि उनका शासन 21,000 वर्ष तक निर्बाध चलेगा और विशेषकर भस्म ग्रह के पूरा होने के बाद (सन 1978 से) तो “महावीर वाणी” खूब फैलेगी
इसलिए जैनों को “पुरुषार्थ” से विरोध करना है.
“विवेक” से “विरोध” करना है.
ये “धर्म” की “प्रभावना” का समय है.
सभी नीचे लिखे मंत्र का जाप करें.
ॐ ह्रीं श्रीम् क्लीं अर्हं श्री धर्मचक्रिणे अर्हते नम:
मंत्र जप करते समय भाव:
१. भगवान समवसरण में बैठे हैं.
२ . देव अधिष्ठित “धर्मचक्र” आकाश में विशाल रूप से दिख रहा है.
३ . करोड़ों देवता सेवा में हाजिर हैं (Like Security Guards).
४ . कुछ दुष्ट देव खलल डालते का प्रयास करते हैं.
५ . सेवा में खड़े देव उन्हें भगाते हैं.
६. भगवान की वाणी सभी को अपनी अपनी भाषा में सुनाई दे रही है.
इस प्रकार सुर, असुर, किन्नर, मनुष्य, तिर्यंच सभी
अर्हत धर्म की जय जयकार करते हैं.