दिवाली के त्यौहार पर कुछ शुभ वस्तुएं अवश्य खरीदें.
क्योंकि दिवाली समृद्धि का त्यौहार है.
आजकल भ्रम में इसे “खर्च” करने का त्यौहार मान लिया गया है.
जितने एड्स शॉपिंग वाले देते हैं उससे नयी पीढ़ी के दिमाग में ये घुसाने का प्रयत्न किया जाता है कि दिवाली पर नयी कार, नयी वाशिंग मशीन और नया टीवी जरूर एक्सचेंज करवाना चाहिए भले ही EMI बढ़ती जाए.
ये सब “नाटक” वो अपनी बिक्री बढ़ने के लिए करते हैं. यद्यपि कुछ किस्सों में वास्तव में डिस्काउंट मिलता है पर जो वस्तु आप खरीद रहे हो, उसकी वैल्यू 15 साल बाद तो छोडो, 2-5 साल बाद भी क्या रहेगी, इसका विचार जरूर कर लेना.
भारतीय परंपरा क्या थी, ये नीचे लिखे उदाहरण से जानें :
कलकत्ता में प्रसिद्ध बद्रीदास जैन मंदिर (मूलनायक शीतलनाथ भगवान) बनवाने वाले मारवाड़ी सेठ के घर का किस्सा है. लगभग 55-60 साल पहले की बात होगी. सेठ का जीवन बड़ा सादगी पूर्ण. धंधे के लिए दिन भर लोगों से मिलना रहता था और व्यापार चलाता था एक मुनीम (अकाउंटेंट). सेठ को बस इतना जानना होता था कि हर दिवाली (year end) पर “हमारी” पूँजी (capital) कितनी बढ़ी.
सेठ का लड़का शादी के लायक हुआ. सेठानी ने कहा : अब इसके लिए कुछ “खोज” करो. सेठ ने बात की मुनीम से. मुनीम से कहा : बस आप मुझे दस लाख रूपये दे दो, बाकी मैं “देख” लूंगा.सेठ ने कहा: क्या सिर्फ दस लाख में हो जाएगा? (हैसियत कितनी थी आज से ६० साल पहले जरा विचार करें). मुनीम ने कहा :हां.
अब मुनीम ने बुलाया : अपने झवेरी को. झवेरी ने बुलाया अपने दलाल को. दलाल पहुंचा एक हीरे के व्यापारी के पास और कहा : मुझे एक कैरट के हीरों की सिंगल लाइन चाहिए और बजट की कोई “चिंता” नहीं है. बस माल जोरदार होना चाहिए.
कुछ दिनों में नेकलेस तैयार होकर आ गया. मुनीम ने “अपनी” तिजोरी में रख दिया और “मौके” का इंतज़ार करने लगा. (मुनीम कैसा था, वो आपको आगे पढ़ने के बाद पता पड़ेगा).
और कुछ दिन बाद ही समाज का कोई फंक्शन था. मुनीम ने सेठानी के पास जाकर कहा: आज आपको “यही” हार फंक्शन में पहनना है. सेठानी खुश!
अब कैरट की सिंगल लाइन पहनकर जब पहुंची फंक्शन में, तो सारे लोग उसी को देखते रहे कि ये सेठानी कौन है?
(कितना सादगी पूर्ण जीवन सबका था पैसा होते हुवे भी).
बस…..रिश्ते आने चालू हो गए और शादी भी हो गयी.
दिवाली पर सेठ ने पुछा: “दस लाख” का खर्च कहाँ हुआ?
(आज के मैनेजमेंट की तरह employee से “daily reporting” लेकर “प्रेशर” नहीं किया जाता था).
मुनीम ने कहा : खर्चा? किस बात का खर्चा?
सेठ ने पुछा: तो क्या खर्चा कुछ नहीं हुआ?
(सेठ के लिए हर चीज व्यापार होती है, उसने सोचा किसी दलाल को पैसा दिया होगा रिश्ता करवाने के लिए).
मुनीम ने हकीकत बताई:
“सेठानी” के गले में हार कहाँ से आया?
सेठ “भौचंका” और मुनीम मुस्करा रहा था.
बोलो दिवाली किसने मनाई?
(मात्र पढ़कर पोस्ट को पूरा ना करें, जैन धर्म सम्बंधित कुछ रहस्य की बातें भी इसमें हैं).