आदमी दूसरे को क्या समझेगा
जब उसने स्वयं को ही नहीं समझा है.
स्वयं में “अटूट शक्ति” भरी पड़ी है
पर उसे “देखने” की हमारी अभी “शक्ति” ही नहीं है.
जिस प्रकार “अत्यन्त प्रकाश” में आँखे देख नहीं पाती
उसी प्रकार हम अपनी “आत्मा के तेज” को देख नहीं पाते.
तेज प्रकाश के सामने “काला चश्मा” लगा हो,
तो वहां आँखें देख सकती हैं.
क्या इसीलिए “आत्म-ज्ञान” के लिए
आँखे बंद करनी होती हैं?
चिंतन करें.
विशेष:
एक बार “प्रकाश” देखने की शक्ति आ गयी,
फिर आँखें बंद करने की आवश्यकता नहीं होती.
इसीलिए तीर्थंकरों की प्रतिमाजी की आँखें खुली होती हैं.
श्री सहस्त्रफफणा पार्श्वनाथ
जाप मंत्र:
ॐ ह्रीम् श्रीम् सहस्त्रफणा पार्श्वनाथाय नम:
(ये प्रकट प्रभावी मंत्र है).