जैन धर्म में ग्रहों (सूर्य, शनि इत्यादि) की स्थिति
तीर्थंकरों के “दास” के रूप में कही गयी है.
यहाँ कहने का मतलब ये नहीं की
उनके प्रभाव को नकारा गया है.
हम भी तीर्थंकरों के दास ही हैं.
जहाँ तीर्थंकरों के समवसरण में करोड़ों देव हाजिर रहते हों
और स्वयं इन्द्र भी सेवा में रहते हों,
तो उनके पुण्य का तो क्या कहना.
ऐसे त्रिलोकीनाथ को नहीं ध्याकर
उनके “दास” को ध्याना
(ज्योतिषिओँ के चक्कर काटना)
मतलब एक “सेवक” की चापलूसी करने जैसा है.
कई लोग ऑफिस में “साहब” से
जल्दी मिलने के लिए
चपरासी को भी घूस देते है.
चपरासी को मात्र “सैलरी” से मतलब है
कुछ फैसिलिटी और देने से वो “प्रसन्न” हो जाता है
वैसे ही देवों को “भोग” इत्यादि लगाने से वो संतुष्ट हो जाते है.
जो देव हमसे भोग पाकर प्रसन्न होते हों,
तो उनकी वास्तविक स्थिति तीर्थंकरों को तो छोडो,
“हमारे” से भी ऊँची कैसे हुई ?
मनुष्य भव को ऐसे ही महान थोड़े ही कहा गया है!फोटो:
अभिमंत्रित श्री मुनिसुव्रत स्वामी
(जिन्हें शनि ग्रह परेशान करता हो
वे ये फोटो डाउनलोड कर के लेमिनेशन करवा लें
और मंत्र का जाप मात्र २० बार रोज करें :
ॐ ह्रीं श्री शनि ग्रह पूजिताय श्री मुनिसुव्रतस्वामीने नमः ||
कुछ लोगों को कितना भी समझा दो,
वो ग्रह से ऊपर किसी की सुनते नहीं है
क्योंकि शुरुआत से ज्योतिषी की बात ही मानते आये हैं
इसलिए संस्कारवश उनकी बात ही उनके लिए सर्वोपरि होती है.
ये मंत्र बस इसीलिए यहाँ दिया है,उनकी संतुष्टि के लिए
कि जैन धर्म में भी ग्रहों का तोड़ है,
और वो भी सम्यक्त्व को सुरक्षित रखते हुए ).
हर पोस्ट को दो-तीन बार अच्छी तरह पढ़ें,
तभी सार समझ में आ सकेगा.
जैन सूत्र और मंत्र बहुत गहराई लिए हुए है,
उन्हें समझने के लिए यदि ये पूरा जन्म भी
लगाना पड़े, तो भी हमारी जीत है.
ग्रह दोष निवारण जैन पध्दति से जानने के लिए पढ़ते रहें :
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