1. अक्सर देखा गया है कि जैसे ही नया साधक
साधना में थोड़ी सी उन्नति करता है कि
उसे “ऊट-पटांग” आकृतियाँ” दिखने लगती हैं.
2. ये सब “आसुरी” शक्तियां हैं जो ये चाहती हैं कि आप
आगे ना बढ़ें.
इन्हें “विघ्नसंतोषी” कहा जा सकता है.
3. इन्हें रोकने के लिए साधना की शुरुआत
“घंटाकर्ण महावीर” के स्तोत्र की मात्र ये गाथा
तीन बार बोलें.
(तीन बार बोलने के पीछे रहस्य ये है कि साधना की
1. शुरुआत में, 2 बीच में और 3 पूर्णता के समय
किसी भी तरह की कोई बाधा ना आये).
“ॐ घन्टाकर्णो महावीर: सर्व व्याधि विनाशक:
“विस्फोटक” भयं प्राप्ते “रक्ष” “रक्ष” महाबल: !”
यहाँ उच्चारण के समय
महावीर और महावीर:
के भेद को समझें.
र: का उच्चारण रह ( ह आधा बोलें)
अब एक बार महावीर और महावीर:
दोनों शब्दों को अलग अलग बोलें
और
दोनों का अंतर समझे.
मंत्र विज्ञान में मंत्र शुद्धि और उच्चारण शुद्धि बहुत महत्त्वपूर्ण है.
4. फिर नीचे लिखा मंत्र १० बार बोलें (मन में नहीं) :
ॐ ह्रीं घन्टाकर्णो नमोsस्तुते ठ: ठ: ठ: स्वाहा ||
इस मंत्र में “ठ: ठ: ठ:” बीजाक्षर बहुत पावरफुल हैं.
उन्हें यथासंभव जोर से बोला जाए.
5. जैन साधना की शुरुआत में “श्री आत्मा रक्षा स्तोत्र” को पढ़ा जाता है.
(ॐ परमेष्ठी नमस्कारं, सारं नवपदात्मकम्……) ये थोड़ा बड़ा है और नए साधक के लिए “विधिसहित” बोलना और “बड़े भाव लाना” जरा मुश्किल है).
6. साधना के समय अलौकिक प्रकाश, आकस्मिक सुगंध,
शीत, सिरहन, ऊर्जा, स्पर्श, स्वर, नाद, सन्देश, प्रेरणा,
रोमांच इत्यादि से मन को विचलित ना करके
और उत्साह से साधना में लग जाना चाहिए.
कई साधक यहीं आकर रुक जाते हैं.
ये अनुभव किसी को भी बताने नहीं चाहिए.
7. सिर्फ गुरु को बता सकते हैं.
गुरु वो है जो शिष्य को जाने
और शिष्य वो है जो गुरु को माने.
फोटो:
महुडी के श्री घंटाकर्ण महावीर
जिन्हें लगभग १०० वर्ष पहले
योगनिष्ठ आचार्य श्रीमद बुद्धिसागर जी
ने साधा है.
इसी आकृति में वे उनके सामने प्रकट हुए थे.