साधारणतया मनुष्य 5 – 6 फुट लम्बा होता है.
अपनी “बुद्धि” के बल पर
मनुष्य 150 माले की बिल्डिंग बना सकता है.
15 किलोमीटर लम्बे ब्रिज बना सकता है.
मंगल ग्रह पर पहुँच सकता है.
माइक पर 10,000 आदमियों को एक साथ भाषण दे सकता है.
और
मात्र एक परमाणु बम से 10 करोड़ व्यक्तिओं के जीवन और सृष्टि के अन्य जीवों का “सर्वनाश” जैसा कर सकता है.
ये “बुद्धि” एक जीवित व्यक्ति के शरीर में ही होती है.
व्यक्ति “जीवित” तभी तक है जब तक उस शरीर में “आत्मा” रहती है.
इतिहास गवाह है की अकेले हिटलर के कारण १ करोड़ से भी ज्यादा यहूदियों की हत्या की गयी और वो भी मात्र ६ वर्ष में.
अब कोई ये ना कहे कि अकेला व्यक्ति क्या कर सकता है?
आप कहेंगे ये तो “पावर” का कमाल है.
इसका उत्तर ये है कि इस दुनिया में हर समय किसी ना किसी ने तो शासन किया ही है पर सभी ने “कुछ जोरदार” काम किया हो, ऐसा नहीं है यानि कि ज्यादातर पावर वालों ने पाव भर जितना काम भी नहीं किया और अपने अहंकार में ही डूबे रहे इसलिए आज उन्हें कोई जानता भी नहीं है.
जबकि बिना पावर के भी कई व्यक्तिओं ने जोरदार काम किया है जैसे स्वामी विवेकानंद ने अपनी “अल्पायु” में किया!
प्रश्न : आखिर कहना क्या चाहते हो?
उत्तर : जब एक निर्जीव “परमाणु” बम सर्वनाश जैसा कर सकता है तो एक “सजीव” आत्मा जब अपने “स्वरुप” में आ जाए तो क्या चमत्कार नहीं कर सकता?