dharma sabha

आधुनिक धर्मसभा!

गुरु हमें मार्ग दिखलाते हैं
ये बार बार कहा जाता है.

पर कब तक “मार्ग देखना” है?
“चलना” कब से शुरू करेंगे?

अभी तक जो “मार्ग” जाना है, उसके बारे में हम बता पाएंगे?
चार लाइनें ही सही!
आज व्याख्यान में जो सुना, उसकी चार लाइनें ही बता दें.

 

असल में हमने गुरुओं से “जानने” योग्य “जाना” ही नहीं.
“मन” में “डर”  है कि “कहीं” “थोड़ा” भी “जान” लिया तो
“सारा” छोड़ना पड़ेगा, इसलिए अच्छा ये “जान” बचाकर भागो!!

“धर्म” का जो “मार्ग” होता है वो तो बचपन में ही सीख लिया जाता है.
“धर्म” क्या है?
“हिंसा” नहीं करनी चाहिए.
“सत्य” बोलना चाहिए,
“चोरी (टैक्स की भी) “नहीं” करनी चाहिए,
“धन” अनावश्यक रूप से इकठ्ठा नहीं करना चाहिए.
“ब्रह्मचर्य” का पालन “विचारों” से भी करना चाहिए.

सम्यक्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्ष मार्ग: ||
ये शब्द “उमास्वातिजी  महाराज के हैं जो उन्होंने उपमिति भाव प्रपञ्चकथा में कहे हैं.

 

पर हम तो “व्यवहार” को “धर्म” मान बैठे हैं.
“पहचान वालों” को जय जिनेन्द्र बोलना,
व्याख्यान में जाना, (“धार्मिक” का सर्टिफिकेट लेने के लिए)
सुन “ना” (पक्का इरादा कि करना  तो है ही नहीं, जो गुरु कहता है)
शीश झुकाना (आशीर्वाद की इच्छा से)
“बाहर निकलने” का “मौका” देखना!

ये है हमारी “दैनिक धर्म चर्या!”

कई लोग तो व्याख्यान भी इसलिए जाते हैं कि इससे “पहचान” बढ़ती है और “सगपण” (Engagement of Children) सरलता से हो जाते हैं. कुछ “उस्ताद” यहाँ भी “धंधे” की बात आराम से कर लेते हैं.  मतलब “सर्टिफिकेट” “धर्म” का, काम “धंधे” का!

 

धर्म स्थान पर हमारी वास्तविक श्रद्धा है : “पुण्य कमाने” की जिससे “धंधा” बढे!
धर्म स्थान पर हमारी जाग्रत बुद्धि है : “पहचान” बढ़ाने की जिससे “धंधा” बढे!
धर्म स्थान पर हमारा आचरण (चरित्र) है : ऐसे घरों में बेटे बेटिओं की शादी ढूंढनी कि लोगों में मान बढे और “धंधा” और जोरदार बढे (Dual Benefits) !

सम्यक्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्ष मार्ग: ||

वास्तव में चाहिए :
श्रद्धा हो देव, गुरु और धर्म पर!
ज्ञान में योग हो देव, गुरु और धर्म का!
आचरण हो – देव, गुरु और धर्म में जो कहा गया है, उसका!

 

पर जब “धर्म” को ही “धंधा” बना लिया हो
(कुछ “साधू” के “वेश” में भी मौजूद  हैं – “जबरदस्त” “धंधा” कर रहे हैं, और उनसे “जबरदस्ती” “धंधा” करवा रहे हैं उन्हें “घेरे” हुए “कुछ लोग” जो ये दावा करते हैं कि “पहुंचे” हुए “साधू” तक उनकी “Direct Approach” है).

इस स्थिति में “मोक्ष मार्ग” तो क्या,
जहाँ  “थे,”
“वहीँ वापस” आ जाएँ तो बहुत है.

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