“नमस्कार” मंत्र महामंत्र है.
ये बात सभी “मानते” हैं.
ये बात सभी “जानते” भी हैं.
पर “अनुभव” कितने जनों ने किया?
अभी तक हम जो कुछ कह रहे हैं वो “दूसरों” के अनुभव के आधार पर कह रहे हैं.
आप्त पुरुष जो कहते हैं, वो स्वीकार करना चाहिए.
भले ही हमें नमस्कार महामंत्र के “प्रभाव” का अनुभव अभी ना हुआ हो.
कारण?
बात एकदम साफ़ है.
हम मानते हैं “जैन धर्म” को.
और जो जैन गुरु कहते हैं, वो मानते ही हैं.
यदि गुरु की बात ना मानें,
तो इसका मतलब “जैन धर्म” को ही हम नहीं मानते.
गुरुओं से जाना है कि
नवकार महामंत्र का नाम ही “नमस्कार” महामंत्र है.
इस महामंत्र की महिमा केवली भी पूरी तरह नहीं गा सके.
प्रश्न:
पर इसकी महिमा किस कारण से है?
“नमो” शब्द के कारण?
“अरिहंत” के कारण?
“पंचपरमेष्ठी” के कारण?
“मंगलाणं च सव्वेसिं” के कारण?
पूरे नमस्कार मंत्र के कारण?
थोड़ी देर रूक कर खुद ही जरा चिंतन करो.
उत्तर:
सिर्फ “अरिहंत” शब्द के रटने से ही अत्यंत पुण्यप्रकट होता है.
“हीरा” अपने आप में बहुमूल्य होता है.
परन्तु उसके “बहुमूल्य” होने से हमें कुछ फायदा नहीं है
यदि वो हमारे “पास” नहीं है.
सबसे महत्त्वपूर्ण बात ये है कि
“अरिहंत” शब्द का “उच्चारण” करते ही “हम” “अरिहंत” से “डायरेक्ट” जुड़ जाते हैं.
जबकि “हीरा” शब्द का उच्चारण करने से हमें कुछ भी प्राप्त नहीं होता.
(मन में दुःख अवश्य आ सकता है कि हमारे पास ऐसा हीरा नहीं है).
क्योंकि “हीरे” में चमक “खुद” की है, ऐसी चमक वो “दूसरे” को नहीं दे सकता.
जबकि “अरिहंत” अपने “ज्ञान” के “प्रकाश” से पूरी दुनिया को “चमत्कृत” करते हैं.
इसलिए “हीरा” तो उनके आगे “कांच” का “टुकड़ा” है.
फिर भी हम “हीरे” के लिए भागते हैं.
अरे! कांच का टुकड़ा भी हीरे की तरह चमक रहा हो,
तो भी हम एक बार तो रुक ही जाएंगे.
उसे लेने के लिए “झुक” ही जाएंगे.
इस “झुकने” से ही “प्राप्ति” संभव है.
बिना झुके जमीन पर पड़ा हीरा तो क्या कांच का टुकड़ा भी नहीं उठा सकेंगे.
अब अरिहंत के सामने कैसे झुकें,
ये कुछ तो “क्लियर” हुआ होगा.
“नमस्कार” की बात चालू है …..और “आशीर्वाद” की बात बाद में……..
(फोटो: सूरत स्थित अतिप्रभावशाली श्री कलिकुंड पार्श्वनाथ भगवान जिनका वर्णन 27 गाथा के बीजमन्त्राक्षर सहित उवसग्गहरं स्तोत्र में आता है – एक बार बड़े भाव से नमस्कार करके उवसग्गहरं अवश्य गुनें – उवसग्गहरं के बारे में पूरी सीरीज jainmantras.com में पहले ही प्रकाशित हो चुकी है.).
नोट: कलिकुंड पार्श्वनाथ का मूल स्थान “धोलका,” अहमदाबाद के पास है.