पितृ दोष, काल सर्प योग, इत्यादि से बचने के लिए जैन विधियां

जैन धर्म में पितृदोष के लिए कोई अलग से पूजा नहीं करायी जाती क्योंकि पितृदोष का निवारण तो मात्र रोज जिन मंदिर के दर्शन और पूजन से हो जाता है. विधि पूर्वक नवकार महामंत्र के जप से भी हो जाता है.

 

काल सर्प दोष का निवारण रोज “पार्श्वनाथ” भगवान के दर्शन, पूजन या “नमिउण पास विसहर वसह जिण फुलिंग” इस मंत्र के जप से हो जाता है. ये मंत्र कितना जप जाए, ये “समस्या” की तीव्रता पर निर्भर करता है ओर साधना की क्वालिटी पर भी.

 

महापूजन के लिए पंडित आते हैं ओर बहुत सी पूजन सामग्री चाहिए जिसका खर्च रुपये लगभग रुपये 15००० से -125000 तक आता है.  परन्तु यदि जप विधि करनी हो तो सामान्यतया “स्वयं” को करनी होती है ओर खर्च ना के बराबर आता है. हाँ, “तपना” स्वयं को पड़ता है.

“सिद्धचक्र” महापूजन, “भक्तामर” महापूजन, “ऋषिमण्डल” महापूजन, “उवसग्गहरं” महापूजन इत्यादि अनेक विधियां जैन धर्म में उपलब्ध है. जिनका प्रभाव शब्दों में नहीं बताया जा सकता.

 

दुर्भाग्य से कुछ जैन सम्प्रदाय जैन मंदिरों को छोड़कर बाकी अन्य सारे मंदिर जाते हैं. और जो इन महापूजन पर मंदिरों में जाते हैं, वो अपने या अपने रिश्तेदारों की ओर से ऐसा महापूजन हो, तब जाते हैं. परन्तु पूरे समय बैठते नहीं ओर उस समय भी मोबाइल के मैसेज उनके लिए ज्यादा महत्त्वपूर्ण है, ऐसा वो  मानते हैं.  इसलिए फल की प्राप्ति नहीं करके, टाइम बर्बाद किया, ऐसा महसूस करते हैं.

महापूजन के पूरा होने पर “शान्तिकलश” की विधि होती है, उस समय तक “हाजरी” (attendance) देने वाले लगभग सभी “मैदान” छोड़ कर भाग जाते हैं इसलिए बहुत बड़े “लाभ” से वंचित हो जाते हैं.

 

जिन मंदिरों की प्रतिष्ठा के समय भी बहुत से  प्रभावशाली मंत्र, तन्त्र ओर यन्त्र  प्रयोग में लाये जाते हैं. जप, तप ओर आराधना करनी होती है. संघ में लगातार आयम्बिल होते हैं ताकि कोई दुष्ट देव विघ्न ना डाल सके. जिस प्रकार कुछ मनुष्य विघ्नसंतोषी होते हैं उसी प्रकार देवों में भी कुछ देव हंसी-ठठ्ठा करने वाले ओर विघ्न डालकर मजे लेते हैं.

ऐसे देवों को डराने ओर दूर भगाने के लिए मन्त्रों के साथ “ठ: ठ: ठ: स्वाहा” इस शब्द का प्रयोग किया जाता है.

जैसे “ॐ ह्रीं घन्टाकर्णो नमोSस्तुते ठ: ठ: ठ: स्वाहा”, इसका  जप दुष्ट देवों को डराकर भगाने के लिए  किया जाता है.

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