ॐ सौं ह्रीं नमो श्री शान्तिनाथाय झ्रौं झ्रौं स्वाहा ।।
ये मंत्र नवस्मरण के “सन्तिकरं” स्तोत्र से उद्धृत हुआ है जिसका प्रकटीकरण jainmantras.com के स्थापक एवं मंत्रसाधक सुरेंद्र कुमार राखेचा (सूरत-बीकानेर निवासी) ने किया है.
इस मंत्र का गगनभेदी उच्चारण मेड़तारोड स्थित
चहुंमुखी शांतिनाथ भगवान् के मंदिर, प्रथम मंजिल पर संध्याकाळ के समय में 11 नवंबर, 2017 को पहली बार किया गया. उस समय मंदिर में कोई भी अन्य व्यक्ति नहीं था.
मंत्र-विवेचन:
ॐ
– प्रणव बीज है. इसका शुद्ध उच्चारण शरीर के सारे चक्रों को
जाग्रत करता है, ये परम शांतिदायक है,
और मोक्ष देने वाला भी !
ओमकार का जाप करने वाला योगी कहलाता है.
(भले दीक्षा ना भी ली हो).
सौं
– बीजाक्षर परम शांतिदायक है.
(हर प्रकार के रोग और सभी प्रकार की चिंता को हरने में समर्थ है).
ह्रीं:
– पापनाशक है. ये मायाबीज है.
जैन धर्म में ह्रींकार में २४ तीर्थंकरों को स्थापित किया गया है जिसके यन्त्र भी खूब प्रचलन में हैं. परन्तु दुर्भाग्य से इस बारे में श्रावकों को बहुत कम जानकारी है.
झ्रौं
– ये उपद्रव हरने वाला है.
स्वाहा
– ये उपद्रव को भस्म करने वाला है.
सूरिमंत्र के अधिष्ठायक देव-देवियाँ
सरस्वती, त्रिभुवनस्वामिनी, महालक्ष्मी, गणपति यक्षराज, दस दिक्पाल और सभी इंद्रों से प्रार्थना है कि
सभी जिनभक्तों की रक्षा करें.
स्तोत्र में 24 तीर्थंकरों के यक्षों, 24 शासनरक्षिका देवियों से भी प्रार्थना है सभी जिनभक्तों की रक्षा करें.
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