जिस साधक के पास स्वयं के सिद्ध किये हुए
“मंत्र,तंत्र और यन्त्र” पास होते हैं,
“आपदायें” उसका कुछ भी बिगाड़ नहीं सकतीं
ये सही है कि “गुरु” द्वारा
दिए गये “मंत्र, यन्त्र और तंत्र”
जल्दी प्रभाव दिखाते हैं
(कभी कभी तो उसी दिन से प्रभाव दिखाने लग जाते हैं,
जिस समय से ये व्यक्ति के पास आते हैं).
आज तक ज्यादातर लोगों में ये एक अविश्वास जैसा है,
कि “गुरु” के बिना हम कुछ नहीं कर सकते.
क्या आपने आज तक “अपने आप” कुछ नहीं सीखा है?
सीखने के लिए “जगत” में बहुत कुछ है.
सौभाग्य से आज बहुत सी पुस्तकें भी उपलब्ध हैं,
“बस, ज्ञान प्राप्ति के लिए पीछे पड़ने की जरूरत है.”
हाँ, आपके लिए “सही क्या है और गलत क्या है”
इसका विवेक रखना होगा.
(एकलव्य का उदाहरण आपके सामने है ही,
इसलिए प्रत्यक्ष गुरु ना भी मिलें,
तो भी आप “सिद्धि” प्राप्त कर सकते हो –
ये बात आपको शायद ही कोई कहने वाला मिलेगा…
हालाँकि ये कहावत प्रचलित है कि अपने मरे बिना स्वर्ग नहीं मिलता.).
मंत्र-जप एवं स्तोत्र पठन के लिए जितनी प्राथमिक बातें (Elementary Needs) होती हैं,
वो हरेक को उसकी “धर्म-व्यवस्था” में मिलती ही हैं.
नहीं तो इतने वर्षों से व्याख्यान सुनने का क्या प्रयोजन है?
जैन धर्म की तो शुरुआत ही नवकार “मंत्र’ से होती है!
आज कितने जनों को गुरु का “संग” “सुलभ” है
या किसके पास इतना समय है कि वो गुरु के पास २-४ घंटे रोज बैठे?
यदि धर्म स्थान जाकर गुरुओं से ये भी पता नहीं पड़ा कि
मंत्र/सूत्र/स्तोत्र को सही तरह से कैसे गुणें/पढ़ें,
तो फिर “जीवन” में आगे कैसे बढ़ेंगे?
“मनुष्य जीवन” “आगे बढ़ने” के लिए है. इसलिए हर एक की प्रगति हो, ऐसी व्यवस्था जैन धर्म में है. “सुखी” व्यक्ति “धर्म” अच्छी तरह से कर सकता है, सात क्षेत्र में दान कर सकता है और हर समय “मन” में प्रसन्नता रख सकता है. सुखी रहने का “अधिकार” हर “धार्मिक-व्यक्ति” को है. (पापी तो दूसरों के अधिकार छीन कर अपने को “सुखी” महसूस कर लेता है).
ऊपर लिखा “पद्मावती अष्टक” आपके पास हो तो ठीक वरना इसे देखकर अपने हाथ से कार्ड शीट पर लिख लें.
पेन नया हो और लाल स्याही वाला हो.
अब हाथ जोड़कर इसे पढ़ें.
जीवन में सुखी होने के लिए नीचे लिखे मंत्र को
मात्र १८ बार रोज गुणें,
“जीवन” के हर “क्षेत्र” में उत्तरोत्तर प्रगति हो जायेगी.
(हो सकती है, ये नहीं कह रहा,
हो ही जायेगी – ये कह रहा हूँ ).
विधि :
१. श्री पद्मावती देवी के फोटो/तस्वीर के सामने
२. दीपक और अगरबत्ती कर के
३. मन में प्रसन्नता से
४. एकदम धीरे धीरे
५. स्पष्ट उच्चारण से
६. हाथ जोड़े हुए बोलें.
ॐ ह्रीं श्रीं
पद्मावती
पद्मनेत्रे
पद्मासने
लक्ष्मीदायिनी
वाञ्छापूर्णि
मम
ऋद्धिं वृद्धिं समीहितिम्
कुरु कुरु स्वाहा ||
याद रहे माता पद्मावती ने अपने “मस्तक” पर श्री पार्श्वनाथ भगवान को धारण किया है,
आपको भी यही करना है – पार्श्वनाथ भगवान को अपने “दिल” में ही नहीं, “दिमाग” में भी धारण कर लें.