देव, गुरु और धर्म
ये जैन धर्म के त्रिक (three tiers) हैं.
देव हैं सिद्ध और अरिहंत
गुरु हैं आचार्य, उपाध्याय और साधू
देव और गुरु की “आज्ञा” में रहना है धर्म.
सम्पूर्ण जैन धर्म को एकदम सारगर्भित रूप से बताना हो तो,
“नमोर्त्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्व साधुभ्य:” ||
मात्र पंद्रह अक्षर हैं,
जिसका खूब जप करें.
परन्तु जप करने से पहले सम्पूर्ण नवकार गुनना ना भूलें.
नवपद में समावेश है – दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तप का.
सभी के संयोग को यन्त्र रूप में करने पर
ये “सिद्धचक्र” का यन्त्र बन जाता है
जो हर जैन मंदिर में सहजता से सुलभ है.
परन्तु इसी की पूजा बहुत कम लोग बड़े भाव से करते हैं.
विशेष:- सिद्धचक्र का विशाल यन्त्र भी ज्यादातर जैन मंदिरों में स्थापित होता है
जिस पर अठारह अभिषेक किया हुआ होता है.
इसकी महिमा शब्दों में बतायी नहीं जा सकती.