मन शुद्ध है, शरीर अशुद्ध है.
आज हमारा ज्यादातर ख्याल
अपने “शरीर” पर है,
“मन” पर नहीं.
बाहरी शरीर आकर्षित करता है.
वास्तविकता क्या है?
“मन” के बिना बाहरी शरीर आकर्षित कर सकता है क्या?
शरीर में आकर्षण है, पर बिना मन के आकर्षण कैसे होगा?
एक शरीर दूसरे शरीर से आकर्षित नहीं हो सकता,
यदि “मन” नहीं है.
यदि “मन” प्रसन्न नहीं है,
तो रसगुल्ला भी अच्छा नहीं लगता.
मन को तुरंत शुद्ध किया जा सकता है…
इसके लिए २-५ वर्ष नहीं,
४-५ महीने नहीं,
१०-१२ दिन नहीं,
२-४ घंटे नहीं,
बस अभी इसी क्षण से ही “मन” शुद्ध हो सकता है,
(ध्यान रहे, शुद्ध “मन” इसी प्रकार तुरंत “अशुद्ध” हो सकता है).
“मन” इंस्टेंट रिजल्ट देने वाला है.
“मन” को समझाना होगा,
कि वास्तव में स्वयं के लिए अच्छा क्या है.
हम तो रोज नयी नयी चीजें चाहते हैं,
हमारे लिए अच्छी है क्या?
रोज नयी नयी चीजों की डिमांड
परिवार को मुसीबत में डाल रही है.
पर मन को समझाए कौन?
मन को समझाने के लिए
उसे “ज्ञान प्राप्ति” की ओर लगाना होगा.
जैन धर्म में सबसे पहले बात कही है –
दर्शन, ज्ञान और चारित्र की आराधना.
दर्शन यानी श्रद्धा
श्रद्धा होती है “मन” में.
फिर ज्ञान प्राप्त होता है.
ये ज्ञान संसार में “श्रुत ज्ञान” के माध्यम से
लोक कल्याण करता है.
शुरुआत की है तीर्थंकरों ने – देशना (व्याख्यान) देकर
गणधरों ने उसे सूत्र रूप में गूंथा है.
जो गुरु परंपरा (चारित्र) से अक्षरस:
शिष्यों को आगे से आगे मिलता रहा.
और श्रावकों को सुनाया जाता रहा.
जब स्मृति कमजोर होने लगी तब सूत्र लिखना चालू हुआ :
क्योंकि जैन धर्म के अनुसार “धर्म” के बारे में लिखना
मतलब “सूक्ष्म” जीवों की हिंसा!
धर्म का कार्य हो और उसमें हिंसा करनी पड़े,
ये अहिंसा प्रधान जैन धर्म को कैसे स्वीकार हो सकता है?
विशेष:
मन तुरंत शुद्ध हो सकता है,
यदि अभी से भी चाहें तो.
तन तुरंत “अशुद्ध” होने लगता है,
चाहे कितना ही परफ्यूम लगाओ!
बाहर निकलने की भी जरूरत नहीं है
बस पंखा-एसी बंद करो, पसीना चालू.
पल पल उम्र घटती रहती है
(अपने आपको “उल्लू” बनाने के लिए
हम कहते हैं कि मेरी इतनी उम्र आ गयी
ताकि संसार में रहने का मोह रख सकें)
टॉप से टॉप क्लास “खाना” खाओ,
सवेरे “हश्र” “वही” होना है.
इतना “जानने” के बाद भी
शरीर से मोह रखोगे,
तो याद रखो उसे भी एक दिन
“निर्दयता” से
इसी समाज द्वारा “जला” दिया जाएगा
और “कपाल क्रिया” भी अपनों द्वारा ही की जायेगी.
अब निर्णय आपको करना है.
फोटो :
भीष्म पितामह को “बाण शय्या”
किसने दी?
(कहे जाने वाले)
अपनों ने ही!
और “नाटक” के तौर पर
पानी भी किसने पिलाया?
अपनों ने ही!