पहले “मंत्र दीक्षा की आवश्यकता-भाग 1 और 2 पढ़ें.
मंत्र साधना की पूर्व भूमिका में “श्रद्धा” सबसे जरूरी है.
और जरूरी बाते है:
1. “धैर्य”
यदि “मंत्र” इस “जीवन” के अंतिम समय में भी सिद्ध हो जाए, तो भी ये “प्राप्ति” कम नहीं है.
श्री इन्द्रदिन्नसुरीजी ने “पावागढ़” (बड़ौदा के पास) “श्री मणिभद्र वीर” को साधा, अपनी ढलती उम्र में.
भगवान महावीर को भी कोई एक-दो साल में केवलज्ञान नहीं मिल गया था.
सार की बात ये है कि “साधक” में “जप करने” का उद्देश्य सबसे पहला होना चाहिए, “सिद्धि” प्राप्त करने का बाद में.
“सत्य” तो ये है कि जो “सिद्धि” प्राप्त करने के लिए जप करते हैं, उन्हें ही सिद्धि सबसे कठिनाई से मिलती है.
“रावण” को हज़ारों वर्ष तप करना “पड़ा” क्योंकि उसे “सिद्धि” प्राप्त करनी थी.
2. “चित्त में प्रसन्नता”
ज्यादातर लोग “जप” तब करने के लिए तैयार होते हैं, जब “बुद्धि” से सारे “रास्ते” बंद हो गए हों. कहने का मतलब ये है कि “भयंकर परेशानियां” आती हैं, तब “जप,तप,दान इत्यादि करते हैं – मजबूरी में.
अब “मजबूरी” में किया गया काम तो “मजदूरी” जैसा ही फल देगा.
जब व्यक्ति स्वयं ही परेशान हो, तो वो “चित्त” में प्रसन्नता कहाँ से लाये!
और चित्त की प्रसन्नता जरूरी है, मंत्र जप में!
प्रश्न: तो फिर इसका उपाय क्या है?
उत्तर: “मंत्र जप” को रोज ही किया जाए, ताकि बाधाएं आएं ही नहीं.
3. “उत्साह”
मन में “उत्साह” तभी आता है, जब चित्त में प्रसन्नता हो.
यह “चित्त” में प्रसन्नता से आगे की स्टेज है.
4. “चिंतन”
“चिंतन” के बारे में जैनमंत्रास.कॉम में पहले ही लिखा जा चूका है.
5.
“चिंतन” (Thought) की विषय वस्तु (Subject Matter) के बारे जब विभिन्न पहलुओं (various alternatives) पर “विचार” (Thought Process) किया जाए, तो वो “मनन” कहा जाता है.
उदाहरण : –
१. विचार आया कि नवकार का जप करना चाहिए.
२. चिंतन किया कि नवकार के जप के लिए सामने क्या रखे? नवकार महामंत्र कि तस्वीर या सिद्धचक्रजी का यन्त्र, इत्यादि.
३. मनन किया कि :
–१. जप किसलिए करूँ?
–२. जप से प्राप्त क्या होगा और कब हो सकेगा?
–३. जप से सिद्धि प्राप्त नहीं हो, तो क्या जप किया हुआ बेकार जाएगा?
–४. सिद्धि प्राप्त करके आखिर “करना” क्या है?
मनन में व्यक्ति “प्रश्नों” के उत्तर स्वयं ही ढूंढता है.
6. “ध्यान”-इस पर बहुत लिखा जा चुका है. पर कोई बिरला ही है जिसने “ध्यान” के अपने अनुभव “जाहिर” किये हों.
7. “गुरु का आशीर्वाद”
क्या आपको “गुरु” का “आशीर्वाद” कभी मिला है?
“आशीर्वाद” लेते समय कभी आपने उसे “personally feel” भी किया है कि अब मेरा उद्धार हो गया/हो जाएगा?