क्या है एक “जैन मंदिर?
1. अद्भुत “स्थापत्य कला”
2. “वास्तु शास्त्र” के सिद्धांतों का संपूर्ण और सूक्ष्मतम पालन
3. “ज्योतिष शास्त्र” के अनुसार शुभतम मुहूर्त्त में खनन कार्य
4. सिद्ध मन्त्रों से प्रतिमाजी की “स्थापना”
5. बहुमूल्य द्रव्यों से “अंजन शलाका”
6. “सिद्धचक्र यन्त्र” की स्थापना
7. शांत वातावरण
8. अट्ठाई महोत्सव
9. मन में आनंद का उल्लास
10. नृत्य नाटिका
11. वातावरण में दूर दूर तक गूंजती हुई घंट की मधुर ध्वनि
12. धन का सदुपयोग
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– एक जिन मंदिर की स्थापना से जिन दर्शन-पूजन से
हज़ारों वर्ष तक लोग “समकित” पाते रहते हैं.
13. आकाश को छूता हुआ ध्वज
14. देवलोक जैसा रंग मंडप
15. गर्भ गृह जो हमें अपनी आत्मा के अंदर भगवान् को प्रवेश करवाता है.
16. स्वच्छ जल से अभिषेक
17. धूप, दीप, चामर से प्रभु-भक्ति
18. सुगन्धित चन्दन, कर्पूर, बराश इत्यादि से प्रभु पूजा
19. पुष्प समर्पण
20. अद्भुत सूत्रों का पठन
21. शास्त्रीय संगीत की लयबद्ध ध्वनि
और
“चैत्यवंदन” करते समय “यौगिक क्रियाओं सहित”
प्रभु की स्तुति, स्तोत्र, स्तवन और ध्यान !
और कुछ बाकी रह जाता है
तन-मन को प्रसन्न करने के लिए?
ऊपर से “अनंत पुण्य का सर्जन”
जो “मोक्ष” तक ले जाता है.
विशेष
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विश्व प्रसिद्ध देलवाड़ा-आबू जैन मंदिर के निर्माण के समय
“अनुपमा देवी” ने अद्भुत भक्ति की और
“पुण्य” अर्जित कर वर्तमान में महाविदेह क्षेत्र में
“केवलज्ञान” प्राप्त कर चुकी है.
मंदिर निर्माण करवाने वाले
“वस्तुपाल-तेजपाल” भी वर्तमान में देवलोक में हैं और
एक भव करके “केवलज्ञान” प्राप्त करेंगे.
अब कहो:
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“जिन मंदिर” में “आशातना” का “ढोल पीटने वाले”
सही हैं या गलत !
फोटो:
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2000 वर्ष प्राचीन कुलपाक जी जैन तीर्थ
(जब अन्य जैन सम्प्रदायों का अस्तित्त्व भी नहीं था).