जैन धर्म में “क्रिया” पर ही स्पष्ट रूप से कहा गया है.
“विधि” सहित “क्रिया” करने पर बहुत जोर दिया गया है.
व्यावहारिक जीवन में भी
सब कार्य विधि सहित ही किये जाते हैं..
बच्चा स्कूल भी जाता है, तो उसी यूनिफार्म में,
जो स्कूल ने निर्धारित कर राखी है.
जैन धर्म को छोड़कर अन्य किसी भी धर्म के
“अनुयायिओं” की कोई यूनिफार्म नहीं है.
विशेषतः जिन प्रतिमाजी की पूजा
और सामायिक करते समय श्रावक इसे उपयोग में लाते है !
ये छोटा सा तथ्य इस बात को प्रकट करता है कि
प्राचीन काल से ही जैन धर्म
कितना सिस्टेमेटिक और साइंटिफिक रहा है.
फोटो:
जिन पूजा करते हुए श्रावक
(विशेष : अन्य किसी भी धर्म में
भगवान (देव और देवी )
की पूजा का अधिकार
सिर्फ पूजारी को ही दिया हुआ है).
आज तक जिन्होनें जिन पूजा नहीं की है,
वे श्रावको के इस “विशेषाधिकार” पर विचार करें
और सत्य को अपनाएँ.
सच्ची बात को सच्चे रूप से अपनाना,
यही सम्यक्त्व है.