“लघु शांति” की अंतिम गाथा
उपसर्गा: क्षयं यान्ति, छिद्यन्ते विघ्नवल्लय :
मन: प्रसन्नतामेति, पूज्यमाने जिनेश्वरे ||19 ||
हर अक्षर मंत्र है,
संसार में एक भी अक्षर ऐसा नहीं है
जो मन्त्रस्वरूप नहीं है.
पूर्व प्रभावक आचार्यों ने जिस प्रज्ञा से जैन मन्त्रों की रचना की है,
आज दुर्भाग्य से उसका प्रभाव आम जनता तक नहीं पहुँच रहा.
इसीलिए जैनी दर दर भटकता है,
दुविधा आने पर मुस्लिम पीरों की शरण लेने से भी नहीं कतराता.
ऐसा क्यों?
क्योंकि जैन धर्म में “श्री पूज्यजी” (भट्टारक)
व्यवस्था अपनी अंतिम साँसें ले रही है.
उपसर्ग क्षय का अर्थ क्या है?
“क्षय” होने और “तुरंत नष्ट” होने में बहुत अंतर है.
जैसे क्षय रोग धीमे धीमे फैलता है,
वैसे ठीक भी धीरे धीरे ही होता है.
कोई यदि एकदम से इसे ठीक करने का सोचे,
तो मानना कि उसने उपरोक्त “मंत्र” के रहस्य को जाना नहीं है.
यद्यपि कुछ मंत्र तुरंत प्रभावशाली होते हैं,
परन्तु उसकी विधि बताने से आम व्यक्ति जो उसका पात्र नहीं है,
क्या उसे ऐसा मंत्र देना चाहिए?
और जानकारी के लिए रोज पढ़ते रहें:
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फोटो:
शांतिनाथ भगवान
श्री नाकोड़ा जैन तीर्थ,
पोस्ट:मेवानगर, तालुका : बालोतरा,
जिला: बाड़मेर
(५५० वर्ष प्राचीन मंदिर के जीर्णोद्धार के समय
ये प्रतिमाजी स्थापित की गयी )
प्रथम मंदिर निर्माण सेठ मालाशाह ने विक्रम संवत १५१८
में श्री चक्रेश्वरी देवी की सहायता से किया था.