सामान्य तौर पर तंत्र-मंत्र शब्द अच्छे नहीं माने जाते
क्योंकि गलत लोगों ने इनका ज्यादातर दुरुपयोग किया है….
इसलिए ये शब्द भी बदनाम हैं.
परन्तु जैन धर्म की शुरुआत होती है : नवकार मंत्र से!
तंत्र पाया जाता है : जैन मंदिरों में.
और वहीँ पर “सिद्धचक्र” का यन्त्र भी पूजा जाता है.
जैन तंत्र का सबसे श्रेष्ठ उदाहरण है-
जैन मंदिर !
विशेषतायें :
१. संपूर्ण वास्तु के अनुसार
२. श्रेष्ठ पदार्थों का उपयोग
(कहीं भी लोहे का प्रयोग नहीं होता)
३. शुभ मुहूर्त्त में आचार्यों द्वारा
खात मुहूर्त्त और प्रतिष्ठा
(प्रतिष्ठा के समय कई आचार्यों की उपस्थिति होती है)
४. शिखर की रचना अपने आप में अद्भुत होती है.
जो भूकम्प के समय भी नहीं गिरते.
५. रंग मंडप ऐसा होता है मानो देव लोक हो.
६. प्रतिमाजी के पीछे की दीवार ऐसी होती है मानो भगवान समवसरण में बैठे हों.
७. अधिष्ठायक देवोँ की हाजरी से कई मंदिरों में अतिशय भी होते हैं – जैसे अमीझरना.
८. प्रतिमाजी की अंजन शलाका विधि से प्राण प्रतिष्ठा होती है.
इसके लिए मुहूर्त्त वाले दिन से पहले की “रात्रि” को आचार्य भगवंत
विशेष विधि कुछ विधिकारक की हाजरी में ही करते हैं.
९. प्रतिष्ठा के समय सबसे श्रेष्ठ पदार्थ ही उपयोग में लाये जाते हैं.
कस्तूरी, सर्वोषधि, तीर्थ जल, केसर, चन्दन, लौंग, कपूर इत्यादि.
१०. जैन मंदिरों में रोज केसर, चन्दन, धुप और कपूर बरास से पूजा होती है.
इससे वातावरण हरदम शुद्ध रहता है जो मन में प्रसन्नता भी लाता है.
११. रोज अभिषेक कर के भगवान का “जन्म महोत्सव” जैसा मनाया जाता है!
विशेष:
विधिपूर्वक रोज जैन मंदिर में पूजा करने वाले को “ऊपर” का दोष नहीं आ पाता.
क्योंकि स्नात्र पूजा के समय श्रेष्ठ मंत्र बोले जाते हैं.
फोटो:
श्री पार्श्वनाथ “गोल्डन” जिनालय,
फालना , राजस्थान