सिद्ध पुरुष के वचन कभी खाली नहीं जाते.
परिस्थितियां बदलते देर नहीं लगती.
कभी एक ही वर्ष में घर में 5-6 मृत्यु के समाचार आते है.
दो साल पहले सूरत में एक ही दिन पति-पत्नी दोनों की मृत्यु हुई है.
पति को कैंसर था और पत्नी स्वस्थ थी.
परन्तु सवेरे पत्नी चल बसी और दोपहर को पति भी चल बसे.
दिखने में बहुत खराब हुआ. पर हकीकत में बहुत अच्छा हुआ.
कैसे?
पुत्र का तलाक हुआ था और घर में मात्र तीन ही प्राणी थे.
परन्तु वृद्ध माँ बाप की सेवा करने वाले
पुत्र को एक ही दिन में माता-पिता ने मानो मुक्त कर दिया.
पुत्र “तत्त्व” को समझता है.
बिमारी की अवस्था में भी कभी चूं तक नहीं की और दिन रात सेवा की.
सभी धन्य है!
प्रश्न:
पर इसमें सिद्ध पुरुष के वचन की बात कहाँ से आई?
उत्तर:
गुरु का आशीर्वाद तीनों पर था.
गुरु का आशीर्वाद कहता हैं : कल्याण हो!
गुरु “कल्याण” होने का “आदेश” देते हैं.
कोई “प्रतिज्ञा, भविष्यवाणी या प्रार्थना नहीं करते.
(बात तो और भी गहरी है, पर ये देखने में आया है -बहुत गहरी बात चुभती हैं -सीधी तीर की तरह उतरती है )
मृत्यु-महोत्सव के समय माता-पिता तो समाधि में थे ही,
पुत्र जीवित होकर भी नित्य समाधि में है.
यही जीवन मंत्र है.
(सत्य घटना पर आधारित, पर नाम गुप्त रखे गए हैं).