“आध्यात्मिक शक्तियां” बड़ी सूक्ष्म होती हैं.
परन्तु उनका प्रभाव “अचिन्त्य” होता है.
(अचिन्त्य का अर्थ – जिसे “सोचा” भी ना जा सके).
“महापुरुषों” का “शरीर” इस बात को प्रकट
करने में असमर्थ होता है कि ये “महापुरुष” है.
अन्यथा क्यों लोग “भगवान महावीर” के
“साधना काल” में उनके पीछे “कुत्ते” दौड़ाते ?
(कल्पना करें कि हम सामयिक कर रहे हों
और कोई हमारे पास कुत्ते को “बिठा” भी दे).
क्या उनमें से किसी को लगा कि वो कैसा
“अनर्थ” कर रहे हैं?
हम भी कई बार यही कर बैठते हैं.
“बुद्धि” के बल पर सभी कुछ निर्णय करना चाहते हैं.
“उन्हें” टेस्ट (test) करना चाहते हैं.
मतलब “गलत तरीकों” से जो “सही” है
“उन्हें” टेस्ट करने की चेष्टा करते हैं.
ऐसी स्थिति में क्या हम “दया के पात्र” नहीं हैं?
अरे !
हम पर कोई “दया” करे, उसके भी “पात्र” नहीं हैं !
(ऊपर जो लिखा है उसे दो-तीन बार पढ़ें,
तब उसका “गूढ़” अर्थ समझ में सकेगा).
प्रश्न:
किसी फक्कड़ के पास जाने पर हम क्या “प्राप्त” करना चाहते हैं?
– जरा “खुद” से पूछ लें.