रोजाना प्रयोग में आने वाले अपने “शब्दों” का “विकास” करें !
भूमिका:
“अक्षर” यानि जिनका कभी क्षय नहीं हो.
हमारी दिनचर्या में हम बहुत से अक्षर बोलते हैं….
कुछ लोग “कुछ शब्द” दिन में “बार बार” बोलते हैं.
ऐसे शब्द “तकियाकलाम” (pet words) के नाम से जाने जाते हैं.
“तकियाकलाम” शब्दों का प्रयोग व्यक्ति “अनायास” करता है.
उसे पता भी नहीं होता कि वो उसी शब्द का प्रयोग कितनी बार करता है.
अब आगे :
कई लोग एक ही बात को
कई वाक्यों में तीन-चार बार एक ही साथ बोलते हैं
– बात “वही” होती है पर घुमा घुमा के कही जाती है.
ऐसे लोग जीवन में कोई उन्नति नहीं करते.
वो अपनी शक्ति का उपयोग करना नहीं जानते
– वास्तव में तो उनमें कोई शक्ति होती भी नहीं है.
वो कोई बात “आशावादी” भी करेंगे
तो उसका अंतिम परिणाम “निराशाजनक” ही होता है.
एक बातऔर – कभी कभार अच्छा परिणाम आने पर भी वो उससे “संतुष्ट” नहीं हो पाते.
ऐसे व्यक्तियों का चित्त भी एक जगह नहीं टिकता.
आश्चर्य कि बात तो ये है कि ये सब तब होता है
जब वो खुद एक ही बात को कई बार बोलते हैं.
(इस बात को जरा गौर से पढ़ें , तब जाकर “गूढ़” बात समझ मेंआएगी ).
ऐसे व्यक्तियों को “सुधारने” के लिए “मंत्र-विज्ञान” बहुत काम का है.
“मंत्र” को रटना होता है.
“बारबार” बोलना होता है.
यदि ऐसे व्यक्ति बोलने की अपनी पद्धति को “मंत्र-जप” में लगा दें,
तो उनका कल्याण हो जाता है.
साथ ही उनके साथ रहने वालों को भी भला हो जाता है
जो उनकी एक ही बात बार बार सुन सुन कर दुखी हो गए हों. 😀
विशेष: उनके लिए ऐसे मंत्र चुने जाते हैं जो उनके “व्यक्तित्त्व” से मेल खाते हों.
(ये गूढ़ विषय है जिसकी चर्चा अभी यहां नहीं की जा सकती).