दिन भर में हज़ारों विचार आते हैं.
“काम के विचार” कितने होते हैं?
कुल आठ-दस भी नहीं !
दिन भर में आने वाले विचारों को लिखा जाए तो?
बड़ी ही हास्यास्पद स्थिति होगी.
फिर कुछ लोग कैसे धाराप्रवाह बोल या लिख लेते हैं?
“ध्यान” के कारण ही !
विचारों को एक श्रृंखला में रखना
“ध्यान” ही है.
एक ही विषय पर चिंतन करना,
उस पर विशेष सोचना, बोलना और लिखना
ये सब “ध्यान” है.
ये भ्रामक मान्यता है कि आँखें बंद करने से ही ध्यान होता है.
मात्र आँखें बंद करने से ही ध्यान नहीं होता
( ध्यान की शुरुआत करने वाले ध्यान के नाम पर नींद के झोंके भी ले लेते हैं –
-पढ़ने वाले छात्र भी किताब खोलते ही नींद बड़े आराम से ले लेते हैं). 🙂
यदि विषय-वस्तु को बस थोड़ा सा जाना जाए और
फिर उस पर “ध्यान” किया जाए
तो “अनजाने” विषय पर भी बहुत कुछ अपने आप ही जाना जा सकेगा.
बच्चों को ध्यान का अभ्यास अवश्य करवाना चाहिए.
इससे उन्हें रटत विद्या से छुटकारा मिलेगा और पढ़ना कभी “भारी” नहीं लगेगा.
शोध : सुरेन्द्र कुमार राखेचा
(इस विषय पर विस्तार से jainmantras.com
द्वारा पब्लिश होने वाली पुस्तक “जैनों की समृद्धि के रहस्य” में बताया जाएगा).