prati or prashn

“प्राप्ति” और “प्रश्न”

ज्यादातर लोगों को “जीवन” से “प्राप्त”
क्या करना है-यही “पता” नहीं होता.

जिनको “प्राप्त” होता है, उन्हें उसका
“उपयोग” करना नहीं आता.
वो “संसार” से “अलिप्त” रहकर अपनी
“मौज” में रहना पसंद करते हैं.

 

अद्भुत बात तो तब हो जब सब कुछ किया भी जाए
फिर भी उसमें “लिप्त” (लिपटा) ना जाए !

वन में साधना करने के बाद भगवान महावीर
वापस “समाज” के संपर्क में क्यों आये –
ये बात “निजानंदियों” को सोचनी चाहिए.

 

प्रश्न:
“प्राप्ति” क्या है?

उत्तर :
जब जीव के लिए
कोई “प्रश्न” ही ना रहे !

इस बात को पढ़ने के बाद आप में
“प्राप्ति” के प्रति कुछ उत्सुकता बढे,
वो आपको “प्राप्ति” के निकट ले जायेगी.

 

और यदि “प्राप्ति” के प्रति “प्रश्न”
या “शंका” खड़ी होती हो,
इसका मतलब “प्राप्ति” क्या है,
अभी आप वो जान ही नहीं पाये हैं.

 

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