अंगूठे अमृत बसे

अंगूठे अमृत बसे,  लब्धि तणा भण्डार
जे गुरु गौतम समरिये, मन वांछित दातार.

ये श्लोक बहुत प्रचलित है.

इसको बोलने का फल है –

श्री गौतम स्वामी मेरी इच्छाएं पूरी करते है.

या

श्री गौतमस्वामी अष्टक:
(कुल ८ श्लोक है)

 

श्री इंद्रभूति वसुभूति पुत्रम्, पृथ्वीभव गौतम गौत्र रत्नम्,
स्तुवन्ति देवा: सुर मानवेन्द्रा:, स गौतमो यच्छतु वाञ्छितं मे ||१||

जिन गौतम स्वामीजी की स्तुति
देव, मानव और इन्द्र भी  करते है,
ऐसे वसुभूति पुत्र, गौतम गौत्र में उत्पन्न
श्री गौतम स्वामी मेरी इच्छाएं पूरी करते है.

गूढ़ रहस्य :

जिनका प्रथम और अंतिम लक्ष्य
मात्र मोक्ष प्राप्त करना है,
उनकी सहायता शासन देवों को करनी पड़ती है.

मतलब उसे सामान्य तौर पर कोई
बड़ी समस्या नहीं झेलनी पड़ती.

यही इसका रहस्य एवं अद्भुत फल है.

 

मंत्र:

१.
ॐ ह्रीं श्रीं गौतमाय
सर्वलब्धि निधानाय
ॐ ह्रीं नमः ||

( रोज १ माला “स्फटिक” रत्न की  या  ५  माला  “सफ़ेद सूत” से बनी फेरें).

२.
ॐ नमो भगवओ
गोयमस्स
सिद्धस्स
बुद्धस्स
अक्खीण
महाण-सस्स
ह्रीं अवतर अवतर
अक्खीण
महाणसी  स्वाहा  ||

( स्फटिक रत्न से बनी माला रोज की ५ फेरें – धन की कमी की सारी समस्या समाप्त हो जायेगी).

 

विशेष:

आत्मा की गति और ऊपर उठने के बाद
वो स्वयं इतना समर्थ हो जाता है की
समस्याओं को वो अवसर समझता  है
कर्म तोड़ने का!

जिस दिन ये बात बुद्धि पूरी तरह स्वीकार कर लेगी,
उसी समय कल्याण हो जाएगा.

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