1 ह्रीं :
ये मायाबीज, त्रैलोक्यबीज और पापनाशक है.
साथ ही साधक में शक्तिओं को जाग्रत करने वाला है.
जैन धर्म में ह्रींकार में २४ तीर्थंकरों का वास है, ऐसा यन्त्र प्रचलन में है.
उसी ह्रींकार में पांच परमेष्ठी के ५ रंग भी हैं,
परन्तु ह्रींकार में पांच परमेष्ठी के स्थान पर पांच वर्ण वाले २४ तीर्थंकर का स्थान है.
हर चौबीसी (भूत, वर्तमान और भविष्य) में तीर्थंकरों के ये पांच वर्ण एक समान संख्या में रहते हैं.
जिस तीर्थंकर का जैसा रंग है, उसी रंग में उन्हें बताया जाता है.
ये बात इस बात का सूचक है कि जैन धर्म में तीर्थंकरों से ऊपर कोई नहीं है.
( जिन सम्प्रदायों के श्रावक आचार्यों के बारे में ज्यादा और तीर्थंकरों के बारे में कम जानते हैं,
वो चेक करें कि वो कौनसा “ब्लंडर” कर रहें हैं).
(विशेष : आपके शरीर के रंग के अनुसार ही आपको वो रंग का ग्रह प्रभावित करता है.
जैसे काला रंग है, तो वो शनि और राहु से प्रभावित है –
यद्यपि जन्म कुंडली के ग्रह भी देखने होंगे
मैली विद्या प्रयोग करने वाले काले रंग का प्रयोग करते हैं.
आपने ज्यादातर किस्सों में देखा होगा कि मैली विद्या
गोरे बच्चों और स्त्रियों पर बुरा प्रभाव जल्दी डालती है.
उससे बचने के लिए “काले टीके” का प्रयोग किया जाता रहा है.).
2 श्रीं :
ये लक्ष्मीबीज है. इसका जाप करने से समृद्धि आती है.
परन्तु गुणों के बिना समृद्धि खतरनाक भी साबित होती है.
जैसे एक तस्कर के पास पैसा होना, उसे समृद्ध नहीं कहा जा सकता
माल जब्त होने और स्वयं के जेल जाने का भय भी बराबर बना रहता है.
समृद्ध उसे कहा जाता है, जो समाज में प्रतिष्ठित हो.
प्रतिष्ठित तभी होगा जब कार्य अच्छा करेगा.
(विशेष :
किसी भी मंत्र में पहले ह्रीं और बाद में ही श्रीं का प्रयोग होता है).
3 ऐं :
ये सरस्वतीबीज है.
भाषा को निर्मल करता है और शास्त्रों का गहन अध्ययन भी करवाता है.
माँ सरस्वती की कृपा होने से किसी भी
नए विषय में भी कोई संशय नहीं रहता.
4 क्लीं :
शक्तिदायक है, निर्भयता देता है.
ये ज्यादा प्रचलित कुछ बीजाक्षरों का संक्षिप्त परिचय हैं.
बीजाक्षर कैसा फल देगा वो उस बात पर निर्भर करता है कि
हमारी साधना का स्तर कितनी ऊंचाई पर है.
बीजाक्षर उतनी ही शक्ति देता है, जितना हम उसे “जप” से सींचें.” मानो सागर हमारे पास है, पर हम उतना ही पानी ले सकेंगे जितना हमारे पास साधन है.