पानी मन्त्रित कैसे होता है?

प्रश्न:

पानी मन्त्रित कैसे होता है?

उत्तर:

ये बहुत “गूढ़ रहस्य” है,
फिर भी समझाने का प्रयत्न इसलिए कर रहा हूँ
की हमारी श्रद्धा “अरिहंत” पर सदा के लिए स्थिर हो जाए
और उनके अचिन्त्य प्रभाव को हम अनुभव कर सकें.

(समझाने का “दावा” नहीं है, बस एक प्रयास है).

पानी से ही “जीवन” है.

(पानी में ऑक्सीजन होता है- ये सब जानते हैं
और हम ऑक्सीजन के बिना जीवित नहीं रह सकते).

भूख से व्यक्ति इतने नहीं मरते
जितने कि प्यास से मरते हैं.

पानी के कारण जितना हमारा शरीर जितना प्रभावित होता है
उतना और किसी से भी नहीं क्योंकि हमारे शरीर में ज्यादातर तो पानी ही है.

पानी एक “द्रव” (लिक्विड) है.
उसी के कारण बहुत सी वस्तुवें आकार लेती हैं.

अभी जो रात और दिन में प्रकाश का उपयोग होता है,
वो इलेक्ट्रिसिटी भी पानी से बनती है.

जैसे पानी को गैस पर रखकर उबालते हैं, तो वो गर्म हो जाता है.
पानी को फ्रीज में रख देते हैं, तो ठंडा हो जाता है.
पानी में शरबत में डालते हैं तो मजेदार पीने लायक हो जाता है.
( कोल्ड ड्रिंक के नाम पर अरबों का धंधा होता है ).

एक बात और,
जितने भी जीवाणु (बैक्टीरिया) शरीर में प्रवेश करते हैं,
वो लिक्विड लेने पर ही जल्दी फैलते हैं.

शराब भी लिक्विड फॉर्म में ही होती है.
तुरंत असर करती है, ज्यादा पीने पर मूर्छा तक आती है.

कहने की बात ये है कि
पानी हमारे शरीर पर तेजी से असर करता है.

अब आगे:

कांच की गिलास में शुद्ध पानी डालकर
उस पर नज़र रखकर कोई मंत्र पढ़ा जाए
तो वो पानी मन्त्रित हो जाता है.

यही मन्त्रित पानी पीने पर शरीर पर तेजी से असर होता है
भूत प्रेत, व्याधि इत्यादि तुरंत भाग जाती है.
क्योंकि “मन्त्र” उच्चारण की “तरंगे”
उस पानी में अपना प्रभाव जमा लेती हैं.

जिसके भाव जैन धर्म पर अडिग न हों या भूत प्रेत के संपर्क में हो
उसे पानी कड़वा लगता है,
उसकी जीभ पर छाले भी पड़ जाते हैं.

(ये इसी ग्रुप में कइयों को अनुभव हो चुका है
जिन जिन के घरों में दुष्ट आत्माओं का असर रहा है)

अति विशेष:


पर पानी मन्त्रित होना इस बात पर बहुत निर्भर करता है
कि मंत्र कितने भाव और प्रभाव से पढ़ा जा रहा है

(जिसे मंत्र का ज्ञान है और उसने जप भी किया हो
जप के समय अनुभव भी हुआ हो )

तभी वो असर आता है.
वर्ना उतना जल्दी नहीं.

अति अति विशेष:


जितना जल्दी असर “अरिहंत” के मंत्र करते हैं,
उतना जल्दी अन्य कोई मन्त्र नहीं करता.

“अरिहंत” से “शुभ” इस जगत में कोई और तत्त्व नहीं है.
उनमें लोक कल्याण की भावना होती है.

वो

जगत के नाथ,
जगत के गुरु,
जगत के बंधू,
जगत के मित्र,

और

जगत में चिंतामणि रत्न के समान हैं.

(बल्कि उससे भी अधिक हैं).

इसमें किसी भी जैनी को शंका नहीं होनी चाहिए.

अब इनका आलम्बन लेने से कौनसा कार्य सिद्ध नहीं हो सकेगा?

महावीर मेरापंथ
Jainmantras.com

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