पहले पढ़ें:
“ध्यान” को “ध्यान” से “जानो”- 1 & 2
1. क्या “ध्यान” से “शान्ति” आती है?
उत्तर: “ऐसा” बार बार सुना है.
2. क्या ये “शान्ति स्थायी होती है या जितनी देर “ध्यान” करते हैं, तब तक ही होती है.
उत्तर: “……………………”
(पीछे जो पोस्ट्स पढ़ीं, उसके आधार पर उत्तर देवें).
3. “ध्यान” कब करना चाहिए?
उत्तर: जब आप शांत हों या अशांत हों.
(मतलब दोनों ही परिस्थितिओं में “ध्यान” कर सकते हो).
4. “ध्यान” के लिए कौनसा मुहूर्त्त अच्छा होता है?
उत्तर: जिस समय आपके मन में “ध्यान” करने का “विचार” आता है, उसी समय का मुहूर्त्त सबसे अच्छा होता है.
ध्यान में अपनी खुद कि इतनी ताकत है कि बिना गुरु के भी आप ध्यान कर सकते हो.
बस हमें विश्वास रखना है कि “आत्मा सो परमात्मा”
यानि मुझे मेरी “आत्मा” का ध्यान लगाना है.
हो सकता है – ध्यान में बैठने के छ: महीने तक ऐसा कुछ भी नज़र ना आये, जिसके लिए बैठते हैं.
इस स्थिति में अपने बचपन को याद करना जब हमने “बारहखड़ी” (ABCD) सीखने में ही 2 साल लगा दिए थे.
क्या “बारहखड़ी” सीखने के बाद भी हम “पढ़ना”-“लिखना” तुरंत सीख गए थे?
पढ़ना-लिखना सीखने के बाद भी कभी हमें जल्दी पढ़ ना पाने की शिकायत रही, कभी जल्दी लिख ना पाने की शिकायत रही और तो और कभी कभी लिखा हुआ पढ़ने पर भी समझ में ही न आने की शिकायत रही . तो भी क्या हमने पढ़ना-लिखना छोड़ दिया था क्या?
किसी से पूछा गया कि आपके शहर में कितने “महापुरुष” पैदा हुवे हैं.
उत्तर मिला : एक भी नहीं, हमारे शहर में तो आज तक “बच्चे” ही पैदा हुवे हैं. 🙂
बात सही है, कोई भी “महापुरुष” एक दिन में नहीं बनता.
ऊँचा ध्यान भी एक दिन में नहीं लगता.
“ध्यान” की ऊंचाई आकाश की तरह अनंत है.
इसलिए जिसे “ध्यान” का व्यसन लग गया,
वो और ऊँची उड़ान भरने का प्रयास करता है.