इस मंत्र में कितना “भरा” हुआ है.
पर बच्चों के लिए तो ये “वरदान” (blessing) ही है
जो सभी को सुलभ (simple) है.
उसकी हम कद्र ही कहाँ करते हैं).
2002 तक इस मंत्र के रहस्य को समझना चाहा
किसी गुरु का सान्निध्य नहीं मिला
तो खुद सरस्वती को ही पूछता रहा.
फिर जप करते हुवे ही समझ आया
कि अपने ही “गुण” की “प्रशंसा” वो खुद कैसे करेगी?
यदि करे तो उसमें भी “ज्ञान” कैसा?
पर जप करने वाले तो अपने “इष्ट” पर पूरा भरोसा करते हैं.
ये कोई बिरला ही बता पाता है,
क्योंकि खुद “मनुष्य का जन्म” भी तो एक “रहस्य” ही है.
क्या उसे खुद पता है कि वो इस धरती पर क्यों आया है?
तो फिर जो मंत्र “अनादि” काल से है,
उसके बारे में तो ज्ञानी से ज्ञानी भी बस इतना ही बता सकेगा कि
ये “अनादि” काल (infinite period of time) से है.
जिस प्रकार हमारा “जीव” अनादि काल से है.